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________________ मूल आवश्यक सूत्र वंद सु ( वन्दन सूत्र ) तिक्खुतो आयाहिणं पयाहिणं करेमि वंदामि नम॑सामि सक्कारेमि सम्माणेमि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामि मत्थएण वंदामि । संस्कृत छाया - त्रिः कृत्वा आदक्षिणम् प्रदक्षिणं करोमि वन्दे नमस्यामि सत्करोमि सम्मानयामि कल्याणं मङ्गलं दैवतं चैत्यं पर्युपासे मस्तकेन वन्दे ।। अन्वयार्थ - तिक्खुत्तो = | = तीन बार, आयाहिणं = दाहिनी ओर से, पयाहिणं = प्रदक्षिणा, करेमि = करता हूँ, वंदामि = स्तुति करता हूँ, नम॑सामि = पंचांग नमाकर नमस्कार करता हूँ, सक्कारेमि = सत्कार करता हूँ, सम्माणेमि = सम्मान देता हूँ। (क्योंकि), कल्लाणं = आप कल्याण रूप हैं, मंगलं = आप मंगल रूप हैं, देवयं = आप धर्ममय देव रूप हैं, चेइयं = ज्ञानवान हैं (इसलिए), पज्जुवासामि = (मैं) आपकी उपासना करता हूँ, मत्थएण = मस्तक झुकाकर, , वंदामि = वन्दन करता हूँ । भावार्थ-हे गुरु महाराज! मैं अञ्जलिपुट को तीन बार अपने बायें (Left) हाथ की ओर से दाहिने (Right) हाथ की ओर घुमाकर प्रदक्षिणापूर्वक स्तुति करता हूँ, पाँच अंग झुकाकर वंदना करता हूँ, नमस्कार करता हूँ, सत्कार करता हूँ, (वस्त्र, अन्न आदि से) सम्मान करता हूँ, आप कल्याण - रूप हैं, मंगलस्वरूप हैं, आप देवतास्वरूप हैं, चैत्य अर्थात् ज्ञानस्वरूप हैं। अत: हे गुरुदेव! मैं मन, वचन और काया से आपकी पर्युपासना-सेवा भक्ति करता हूँ तथा विनयपूर्वक मस्तक झुकाकर आपके चरण-कमलों में वंदना करता हूँ। विवेचन - 'गुरु' शब्द का अक्षरार्थ इस प्रकार किया गया है गुशब्दस्त्वन्धकारः स्याद्, रुशब्दस्तन्निरोधकः । अन्धकारनिरोधित्वात्, गुरुरित्यभिधीयते ।।
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
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