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________________ प्रकाशकीय तीर्थङ्कर भगवान की अनमोल आदेय वाणी को अनंत जीवों ने आत्मसात् कर शाश्वत सुख को प्रदान करने वाले, जन्म-मरण के दुःख से रहित मोक्ष रूपी शाश्वत स्थान को प्राप्त किया है, वर्तमान में कर रहे हैं, व भविष्य में भी करते रहेंगे। वर्तमान में तीर्थकर भगवंतों की वाणी के रूप में 32 गये हैं। इन 32 आगमों में 32वाँ आगम है- आवश्यक सूत्र करणीय) 'आवश्यक' का दूसरा नाम 'प्रतिक्रमण' भी है। पापों से पीछे हटना प्रत्येक साधक का लक्ष्य पाप से स्वरूप को प्राप्त करना है। साधक दैनिक जीवन में लगे दोषों की शुद्धि के लिए प्रतिक्रमण के द्वारा आलोचना व प्रायश्चित्त करता है व भविष्य में उन दोषों का केवन नहीं करने की प्रतिज्ञा करता है। आगम प्रमाण रूप माने आवश्यक अर्थात् अवश्य प्रतिक्रमण का अर्थ हैमुक्त होकर शुद्ध आत्म प्रस्तुत पुस्तक "आवश्यक सूत्र" में 6 आवश्यकों के माध्यम से जीवन में लगे दोषों की शुद्धि किक प्रकार हो, इसका विस्तृत विवेचन किया गया है। 5 परिशिष्ट के माध्यम से श्रमण आवश्यक सूत्र की विधि व पाठ, श्रावक सूत्र के पार्टी का विवेचन व विधि, श्रमण श्रमणी के पार्टी में अंतर, आवश्यक संबंधी विचारणा, प्रश्नोत्तर, संस्तारक पौरूषी आदि के विषय में विस्तृत विवेचन किया गया है। व्यसन मुक्ति के प्रबल प्रेवक आचार्यप्रवर 1008 श्री हीराचन्द्र जी म.सा. का व्यसन मुक्ति व सामायिक स्वाध्याय के अभियान को साकार रूप प्रदान करने में यह आवश्यक सूत्र कारगर सिद्ध हुआ है। आवश्यक सूत्र के स्वाध्याय से प्रत्येक
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
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