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________________ { 178 [आवश्यक सूत्र वे गणधर प्रणीत है-छेदोपस्थापनीय चारित्र धारक को उभयकाल आवश्यक करना अनिवार्य है, तो गणधर भगवन्त भी दोनों समय आवश्यक (प्रतिक्रमण) करते समय मांगलिक भी बोलेंगे ही। प्रश्न 87. चारित्र किसे कहते हैं? उत्तर चारित्र का अर्थ है व्रत का पालन करना । आत्मा में रमण करना । जिसके द्वारा आत्मा के साथ होने वाले कर्म का आस्रव एवं बंध रुके एवं पूर्व कर्म निर्जरित हों, उसे चारित्र कहते हैं अथवा अठारह पापों का यावज्जीवन तीन करण-तीन योग से प्रत्याख्यान करना भी चारित्र' कहलाता है। उत्तर प्रश्न 88. बारह व्रतों में मूल व्रत कितने और उत्तर व्रत कितने हैं ? उत्तर पाँच अणुव्रत मूल व्रत हैं, क्योंकि वे बिना सम्मिश्रण के बने हुए हैं। शेष व्रत उत्तर व्रत हैं, क्योंकि वे मूल व्रतों के सम्मिश्रण से या उन्हीं के विकास से बने हैं। प्रश्न 89. अणुव्रत किसे कहते हैं? अणु अर्थात्-छोटा । जो व्रतों-महाव्रतों की अपेक्षा छोटे होते हैं तथा कर्मों की स्थिति आदि को छोटा करने में सहायक होने से प्रथम पाँच व्रतों को अणुव्रत कहते हैं। प्रश्न 90. गुणव्रत किसे कहते हैं ? उत्तर जो अणुव्रतों को गुण अर्थात्-लाभ पहुंचाते हैं अथवा पुष्ट करते हैं उन्हें गुणव्रत कहते हैं। प्रश्न 91. शिक्षाव्रत किसे कहते हैं ? उत्तर जैसे कोई व्यक्ति किसी को रत्नादि देता है तो साथ में उसे सुरक्षित रखने की शिक्षा भी देता है, उसी प्रकार आठ व्रतों की सुरक्षा के लिए अन्तिम चार व्रतों की शिक्षा देने के कारण इन्हें शिक्षाव्रत कहते हैं। प्रश्न 92. श्रावक त्रस जीवों की हिंसा का त्याग क्यों करता है? त्रस की हिंसा से पाप अधिक क्यों होता है? त्रस की हिंसा से पाप अधिक होता है, क्योंकि त्रस जीवों में जीवत्व प्रत्यक्ष है तथा वे मारने पर बचने का प्रयास करते हैं। ऐसी दशा में जीवत्व प्रत्यक्ष होते हुए बलात् मारने से क्रूरता अधिक आती है। स्थावर जीवों को जितने पुण्य से स्पर्शनेन्द्रिय बलप्राण आदि मिलते हैं, उससे भी कहीं अधिक पुण्य कमाने पर एक त्रस जीव को एक जिह्वा-वचन आदि प्राण मिलते हैं। उन अनन्त पुण्य से प्राप्त प्राणों का वियोग होता है, इसलिए त्रस जीवों की हिंसा से पाप भी अधिक होता है। प्रश्न 93. अहिंसा अणुव्रत का पालन कितने करण कितने योग से होता है? यद्यपि अहिंसा अणुव्रत का नियम श्रावक दो करण व तीन योग से लेता है पर इसका तीन करण उत्तर
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
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