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________________ परिशिष्ट-4] 175} प्रश्न 77. जिनवचन में शंका क्यों होती है, उसे कैसे दूर किया जा सकता है? उत्तर श्री जिनवचन में कई स्थानों पर सूक्ष्म तत्त्वों का विवेचन हुआ है। कई स्थानों पर नय और निक्षेप के आधार पर वर्णन हुआ है। वह हमारी स्थूल बुद्धि से समझ में नहीं आता , इस कारण शंकाएँ हो जाती हैं। अतः हमें अरिहन्त भगवान के केवलज्ञान व वीतरागता का विचार करके तथा अपनी बुद्धि की मंदता का विचार करके, गुरुजनों आदि से समाधान प्राप्त कर ऐसी शंकाओं को दूर करना चाहिए। प्रश्न 78. प्रतिक्रमण में 'इच्छामि खमासमणो' पाठ का उद्देश्य क्या है? उत्तर इस पाठ का उद्देश्य शिष्य को गुरु के प्रति कर्त्तव्य की जानकारी प्रदान करना, उनकी सुखसाता की पृच्छा करना, अपने से हुई जानी-अनजानी अविनय आशातना की क्षमायाचना, दिवस भर में लगे अतिचारों की निंदा करना, स्वयं में उन जैसे गुण विकसित हो ऐसी कामना करना आदि है। इसे वंदना का उत्कृष्ट रूप बताया है। प्रश्न 79. उत्कृष्ट वंदना में दोनों घुटनों को ऊँचा क्यों किया जाता है? उत्तर यह आसन गर्भाशयवत् कोमलता एवं विनय का प्रतीक है। इसलिए विनयसम्पन्नता के प्रकटीकरण की भावना से ऐसे आसन का कथन पूर्वाचार्यों द्वारा किया गया है। प्रश्न 80. खमासमणो और भाव वन्दना का आसन किसका प्रतीक है? उत्तर खमासमणो का आसन कोमलता व नम्रता का प्रतीक है तथा वन्दना का आसन शरणागति व विनय का प्रतीक है। प्रश्न 81. इच्छामि खमासमणो के द्वारा की जाने वाली वंदना कब पूर्ण होती है? उत्तर इच्छामि खमासमणो द्वारा की जाने वाली वंदना 25 आवश्यकों को करने से पूर्ण होती है। श्री समवायांग सूत्र में बारह आवर्त वाले कृति कर्म का वर्णन करते हुए वंदना के 25 आवश्यक बताये हैं। उनकी व्याख्या निम्न प्रकार से है1-2. दो अवनत-(दो बार नमस्कार-झुकना) अणुजाणह मे मिउग्गहं कहते हुए कर-मस्तक झुकाते हुए गुरु के अवग्रह में प्रवेश करने की अनुज्ञा माँगना, प्रत्येक खमासमणो का एक-एक अवनत, इस प्रकार दो खमासमणो के दो अवनत होते हैं। 3. यथाजात-जन्मते हुए बालक के समान मुद्रा किये हुए दोनों हाथ जोड़कर मस्तक पर लगाते हुए। 4-15. बारह आवर्तन-अहो, कायं, काय के तीन, जत्ता भे/ ज व णिज/ जं च भे के तीनये छ: आवर्तन प्रथम खमासमणो के व छ: दसरे खमासमणो के। 16-19. चार सिर-चार बार सिर झुकाना-दो खमासमणो के दो बार ‘संफासं' कहते हुए एवं
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
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