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________________ उत्तर परिशिष्ट-4] 171} प्रश्न 52. 'नमोत्थु णं' पाठ का दूसरा नाम क्या है ? उत्तर इस पाठ को ‘शक्रस्तव' पाठ भी कहते हैं, क्योंकि प्रथम देवलोक के इन्द्र-शक्रेन्द्र भी तीर्थङ्करों अरिहन्तों की इसी पाठ से स्तुति करते हैं। इसका एक और नाम प्रणिपात सूत्र' भी है। प्रणिपात का अर्थ-अत्यन्त विनम्रता एवं बहुमानपूर्वक अरिहन्त-सिद्ध की स्तुति करना है। प्रश्न 53. पहला 'नमोत्थु णं' किसको दिया जाता है? उत्तर पहला ‘नमोत्थु णं' सिद्ध भगवन्तों को दिया जाता है। प्रश्न 54. दूसरा 'नमोत्थु णं' किसको दिया जाता है ? उत्तर दूसरा ‘नमोत्थु णं' अरिहंत भगवंतों को दिया जाता है। प्रश्न 55. नवकार मन्त्र में पहले अरिहन्तों को नमस्कार किया गया पर 'नमोत्थु णं' में पहले सिद्धों को नमस्कार क्यों किया गया? नवकार मन्त्र में जीवों पर उपकार की दृष्टि से पहले अरिहन्तों को नमस्कार किया गया, किन्तु 'नमोत्थु णं' में शक्रेन्द्र महाराज ने आत्मिक गुणों में बड़े की दृष्टि से पहले सिद्धों को नमस्कार किया है। प्रश्न 56. सामायिक लेने से पूर्व तीन बार विधिवत् वंदन करते हैं, पारते समय नहीं करते हैं। ऐसा क्यों? उत्तर सामायिक लेने से पूर्व उद्देश्य यह है कि हम गुरु महाराज से आज्ञा लेकर आस्रव को छोड़कर संवर में जा रहे हैं। जबकि सामायिक पारते हैं तो संवर को छोड़कर पुनः आस्रव की ओर बढ़ते हैं, इसीलिए पारते समय वंदन नहीं करते हैं। क्योंकि संवर से आस्रव की ओर जाने के लिये गुरु-भगवंतों की आज्ञा नहीं है। प्रश्न 57. संज्ञा किसे कहते हैं? उत्तर चारित्र मोहनीय कर्मोदय की प्रबलता से होने वाली अभिलाषा, इच्छा ‘संज्ञा' कहलाती है। आहार संज्ञा, भय संज्ञा, मैथुन संज्ञा व परिग्रह संज्ञा के रूप में ये चार प्रकार की होती हैं। प्रश्न 58. विकथा किसे कहते हैं? उत्तर जीवन को दूषित करने वाली कथा को 'विकथा' कहते हैं। स्त्री कथा, भक्त कथा, देशकथा और राज कथा के भेद से विकथा चार प्रकार की होती हैं। प्रश्न 59. अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार, अनाचार किसे कहते हैं? अतिक्रम-व्रत की प्रतिज्ञा के विरुद्ध व्रत के उल्लंघन करने के विचार को अतिक्रम कहते हैं। उत्तर
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
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