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________________ { 160 [आवश्यक सूत्र प्रश्न 8. सिद्ध किसे कहते हैं ? उत्तर जो आठों कर्मों का क्षय कर चुके हैं तथा जिन्होंने आत्मा के आठों गुणों को हमेशा के लिए सम्पूर्ण रूप से प्रकट कर लिया है, उन्हें सिद्ध कहते हैं। प्रश्न 9. अरिहन्त और सिद्ध में क्या अन्तर है ? उत्तर अरिहन्त भगवान चार घाती कर्मों-ज्ञानावरणीय. दर्शनावरणीय.मोहनीय और अन्तराय का क्षय कर चुके हैं। अरिहन्त सशरीरी होने से तीर्थ की स्थापना करते हैं, उपदेश देते हैं और धर्म से गिरते हुए साधकों को स्थिर करते हैं, जबकि सिद्ध आठ कर्मों (1. ज्ञानावरणीय, 2. दर्शनावरणीय, 3. वेदनीय, 4. मोहनीय, 5. आयु, 6. नाम, 7. गोत्र, 8. अन्तराय) को क्षय करके सिद्ध हो गये हैं और वे सुखरूप सिद्धालय में विराजमान हैं । वे अशरीरी होने से उपदेश आदि की प्रवृत्ति नहीं करते। प्रश्न 10. सिद्ध मुक्त हैं, फिर भी सिद्धों के पहले अरिहन्तों को नमस्कार क्यों किया गया? उत्तर अरिहन्त धर्म को प्रकट कर मोक्ष की राह दिखाने वाले और सिद्धों की पहचान कराने वाले हैं। अरिहन्त सशरीरी हैं और सिद्ध अशरीरी । परम उपकारी होने के कारण सिद्धों के पहले अरिहन्तों को नमस्कार किया गया है। प्रश्न 11. आचार्य किसे कहते हैं ? उत्तर चतुर्विध संघ के वे श्रमण, जो संघ के नायक होते हैं और जो स्वयं पंचाचार का पालन करते हुए साधु-संघ में भी आचार पलवाते हैं, उन्हें आचार्य कहते हैं । ये 36 गुणों के धारक होते हैं। प्रश्न 12. उपाध्याय किसे कहते हैं? उत्तर वे श्रमण, जो स्वयं शास्त्रों का अध्ययन करते हैं और दूसरों को अध्ययन करवाते हैं, उन्हें उपाध्याय कहते हैं। ये 25 गुणों के धारक होते हैं। प्रश्न 13. साधु किसे कहते हैं ? उत्तर गृहस्थ धर्म का त्याग कर जो पाँच महाव्रत-1. अहिंसा, 2. सत्य, 3. अचौर्य, 4. ब्रह्मचर्य और 5. अपरिग्रह को पालते हैं एवं शास्त्रों में बतलाये गये समस्त आचार सम्बन्धी नियमों का पालन करते हैं, उन्हें साधु कहते हैं। ये 27 गुणों के धारक होते हैं। प्रश्न 14. संख्या की दृष्टि से न्यूनतम गुण वाले गुणात्मक रूप से श्रेष्ठ कैसे? उत्तर पंच परमेष्ठी में 108 गुण होते हैं। अरिहंत में 12, सिद्ध में 8, आचार्य में 36, उपाध्याय में 25, साधु में 27 = कुल 108 । गुणात्मक दृष्टि से चिन्तन किया जाए तो सबसे श्रेष्ठ सिद्ध होते हैं। संख्या की दृष्टि से देखने पर तो सबसे कम गुण सिद्ध भगवान में होते हैं । गहराई से अवलोकन
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
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