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________________ परिशिष्ट-2] 133} कसायाणं, पंचण्हमणुव्वयाणं, तिण्हं गुणव्वयाणं, चउण्हं सिक्खावयाणं बारस-विहस्स सावग-धम्मस्स, जं खंडियं जं विराहियं तस्स मिच्छा मि दुक्कडं॥ संस्कृत छाया- इच्छामि तिष्ठामि कायोत्सर्गं यो मया दैवसिको अतिचार: कृत: कायिको वाचिको मानसिको उत्सूत्र उन्मार्गो अकल्पोऽकरणाीयो दुर्ध्यातो दुर्विचिन्तितोऽनाचारेऽनेष्टव्योऽश्रावकप्रायोग्य ज्ञाने तथा दर्शने चारित्राचारित्रे श्रुते सामायिके, तिसृणां गुप्तीनां चतुर्णां कषायानां पंचानां अणुव्रतानां त्रयाणां गुणव्रतानां चतुर्णां शिक्षाव्रतानां द्वादशविस्य श्रावकधर्मस्य यत्खण्डितं यद्विराधितं तस्य मिथ्या मे दुष्कृतम् ।। अन्वयार्थ-इच्छामि ठामि काउस्सग्गं = मैं कायोत्सर्ग करना चाहता हूँ, जो मे देवसिओ = जो मैंने दिवस सम्बन्धी, अइयारो कओ = अतिचार (दोष) सेवन किये हैं। (चाहे वे), काइओ, वाइओ, माणसिओ = काया, वचन व मन सम्बन्धी, उस्सुत्तो = सूत्र सिद्धान्त के विपरीत उत्सूत्र की प्ररूपणा की हो, उम्मग्गो = जिनेन्द्र प्ररूपित मार्ग से विपरीत उन्मार्ग का कथन व आचरण किया हो, अकप्पो, अकरणिज्जो = अकल्पनीय (नहीं कल्पे वैसा), नहीं करने योग्य कार्य किए हों, (ये कायिक, वाचिक अतिचार हैं, इसी प्रकार ।), दुज्झाओ, दुव्विचिंतिओ = मन से कर्म बंध हेत रूप दष्ट ध्यान व किसी प्रकार का खराब चिंतन किया हो, अणायारो, अणिच्छियव्वो = अनाचार सेवन (व्रत भंग) किया व नहीं चाहने योग्य की वांछा की हो, असावगपाउग्गो = श्रावक-धर्म के विरूद्ध आचरण किया हो, नाणे तह दंसणे = ज्ञान तथा दर्शन एवं, चरित्ताचरित्ते, सुए = श्रावक धर्म, सूत्र सिद्धान्त, सामाइए = सामायिक में, तिण्हं गुत्तीणं = तीन गुप्ति के गोपनत्व का, चउण्हं कसायाणं = चार कषाय के सेवन नहीं करने की प्रतिज्ञा का, पंचण्ह-मणुव्वयाणं = पाँच अणुव्रत, तिण्हं गुणव्वयाणं = तीन गुणव्रत, चउण्हं सिक्खावयाणं = चार शिक्षा व्रत रूप, बारस-विहस्स सावग-धम्मस्स = बारह प्रकार के श्रावक-धर्म का, जं खंडियं जं विराहियं = जो मेरे देश रूप से खण्डन हुआ हो, सर्व रूप से विराधना हुई हो तो, जो मे देवसिओ = जो मैंने दिवस सम्बन्धी, अइयारो कओ = कोई अतिचार दोष किये हों तो, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं = वे मेरे दुष्कृत कर्मरूप पाप मिथ्या हो। बारह स्थूल 1. पहला स्थूल प्राणातिपात-विरमण व्रत के विषय में जो कोई अतिचार लगा हो तो आलोउं-1. रोषवश गाढ़ा बंधन बांधा हो 2. गाढ़ा घाव घाला हो 3. अवयव का छेद किया हो, 4. अधिक भार 1. अवयव चाम आदि का।
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
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