SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिशिष्ट-1] 117} समुच्चय का पाठ मूलगुण 5 महाव्रत के विषय, उत्तरगुण 10 प्रत्याख्यान आदि के विषय, 33 आशातना के विषय, 5 महाव्रत की 25 भावना के विषय, 5 संलेखना के विषय, इनमें अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार, अनाचार लगा हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। अठारह पापस्थान मूल- अठारह पापस्थान आलोउं-1. प्राणातिपात, 2. मृषावाद, 3. अदत्तादान, 4. मैथुन, 5. परिग्रह, 6. क्रोध, 7. मान, 8. माया, 9. लोभ, 10. राग, 11. द्वेष, 12. कलह, 13. अभ्याख्यान, 14. पैशुन्य, 15. परपरिवाद, 16. रति-अरति, 17. माया-मृषावाद, 18. मिथ्यादर्शन शल्य, इन 18 पापस्थानों में से किसी का सेवन किया हो, सेवन कराया हो, सेवन करते हुए को भला जाना हो तो अनन्त सिद्ध केवली भगवान की साक्षी से जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं । अन्वयार्थ-प्राणातिपात = प्रमत्त योगों से प्राणों की हिंसा करना । मृषावाद = असत्य, झूठ बोलना । अदत्तादान = चोरी (बिना दिए ग्रहण करना)। मैथुन = अब्रह्मचर्य, कुशील का सेवन करना । परिग्रह = मूर्छा, ममत्व रखना । क्रोध = रोष, गुस्सा करना । मान = अहंकार, घमण्ड करना । माया = छल, कपट करना । लोभ = लालच, तृष्णा रखना (अप्राप्त वस्तु की इच्छा रखना लोभ, प्राप्त वस्तु पर ममत्व रखना परिग्रह है)। राग = माया और लोभजन्य आत्मा का वैभाविक परिणाम । द्वेष = क्रोध और मानजन्य आत्मा का वैभाविक परिणाम । कलह = क्लेश, झगड़ा करना । अभ्याख्यान = झूठा कलंक लगाना । पैशुन्य = दूसरों की चुगली करना, दोष प्रकट करना । परपरिवाद = दूसरों की निन्दा करना । रति = अरति = बुरे कार्यों में चित्त का लगाना रति है और संयम आदि में चित्त नहीं लगाना अरति है। मायामृषावाद = कपट सहित झूठ बोलना। मिथ्यादर्शन शल्य = कुदेव, कुगुरु, कुधर्म (कुशास्त्र) पर श्रद्धा करना अर्थात् विपरीत श्रद्धा करना।
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy