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________________ चतुर्थ अध्ययन - प्रतिक्रमण] 65} उत्कृष्ट आठ मास की, स्वयं आरम्भ नहीं करे। 9. प्रेष्य-त्याग प्रतिमा-जघन्य एक दिन उत्कृष्ट नौ मास की, दूसरों से आरम्भ नहीं करावें । 10. उद्दिष्ट-भक्त-त्याग प्रतिमा-जघन्य एक दिन उत्कृष्ट दस मास की, अपने वास्ते आरम्भ कर कोई वस्तु बनाकर देवे तो नहीं लेवे, कोई कुछ बात एक बार या बार-बार पूछे तो जानते हो तो हाँ कहे, नहीं तो ना कहे । खुर मुण्डन करावे, शिखा रखे। 11. श्रमणभूत प्रतिमा-जघन्य एक दिन उत्कृष्ट ग्यारह मास की, खुर मुण्डन करे या शक्ति हो तो लोच करे । साधु की तरह रजोहरण, उपकरण, वस्त्र, पात्र आदि रखे। स्व-ज्ञाति की गोचरी करे, साधु की तरह उपदेश देवे और कहे कि मैं प्रतिमाधारी श्रावक हूँ। इन सर्व प्रतिमाओं का काल पाँच वर्ष छह माह का है। बारहवें बोले भिक्षु की बारह प्रतिमा-भिक्षु प्रतिमा की आराधना के चौदह नियम (19 सूत्रों का संक्षेप) 1. शरीर पर ममता नहीं रखे, शरीर की शुश्रुषा नहीं करे । देव, मनुष्य और तिर्यञ्च सम्बन्धी उपसर्ग समभाव से सहन करे। 2. एक दाति (दत्ति) आहार, एक दाति पानी, प्रासुक तथा एषणिक लेवे । दाति-दत्ति अर्थात् धार, एक साथ धार खण्डित हुए बिना जितना पात्र में पड़े उतने को दाति कहते हैं। 3. प्रतिमाधारी साधु, गोचरी के लिए दिन के तीन विभाग करे और तीन विभागों में से चाहे जिस एक विभाग में गोचरी करे। 4. प्रतिमाघारी साधु, छह प्रकार से गोचरी करे-1. पेटी के आकारे, 2. अर्ध पेटी के आकारे, 3. बैल के मूत्र के आकारे, 4. पतंग उड़े उस तरह 5. शंखावर्तन, 6. जाते हुए करे तो आते हुए नहीं करे और आते हुए करे तो जाते हुए नहीं करे। 5. गाँव के लोगों को मालूम हो जाय कि यह प्रतिमाधारी मुनि है तो वहाँ एक रात्रि ही रहे और ऐसा मालूम नहीं हो तो दो रात्रि रहे । उपरान्त जितनी रात्रि रहे उतना प्रायश्चित्त का भागी बने। 6. प्रतिमाधारी साधु, चार कारण से बोलते हैं-1. याचना करते, 2. मार्ग पूछते, 3. शय्या आदि की आज्ञा प्राप्त करते और 4. प्रश्न का उत्तर देते। 7. प्रतिमाधारी साधु, तीन स्थान में निवास करें-1. बाग-बगीचा, 2. श्मशान छत्री, 3. वृक्ष के नीचे । इनकी याचना करे। 8. प्रतिमाधारी साधु, तीन प्रकार की शय्या ले सकते हैं-1. पृथ्वी, 2. शिला, 3. काष्ठ। 9. प्रतिमाधारी साधु, जिस स्थान में है वहाँ स्त्री आदि आवे तो भय के कारण बाहर निकले नहीं, कोई जबरदस्ती हाथ पकड़ कर निकाले तो ईर्या समिति सहित बाहर हो जावे तथा वहाँ आग लगे तो भी भय से बाहर आवे नहीं, कोई बाहर निकाले तो ईर्या समिति पूर्वक बाहर निकल जावे ।
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
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