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________________ [4] आज्ञा का पुरुषार्थ बनाता है सहज अब आज्ञा का पालन सहज बनने के लिए प्रश्नकर्ता : मन-वचन-काया की सहजता और आत्मा की सहजता के बारे में थोड़ा समझाइए न। दादाश्री : आत्मा सहज ही है। ज्ञान मिलने के बाद जो शुद्धात्मा लक्ष (जागृति) में आता है न, वह अपने आप ही लक्ष में आता है। हमें याद नहीं करना पड़ता। जिसे याद करते हैं, उस चीज़ को भूल जाते हैं। यह निरंतर लक्ष में रहता है। इसे कहेंगे कि आत्मा सहज हो गया। अब मन-वचन-काया को सहज करने के लिए जैसे-जैसे ज्ञानी पुरुष की आज्ञा का पालन करते जाएँगे वैसे-वैसे मन-वचन-काया सहज होते जाएँगे। प्रश्नकर्ता : इसमें आप ऐसा कह रहे हैं कि 'सहज भाव से निकाल करना है', तो सहज भाव लाने का तरीका क्या है ? दादाश्री : सहज भाव अर्थात् क्या? ज्ञान मिलने के बाद आप शुद्धात्मा बन गए इसलिए आप सहज भाव में ही हो। क्योंकि जब अहंकार नहीं होता, तब सहज भाव ही रहता है। अहंकार की एबसेन्स (अनुपस्थिति), वही सहज भाव। यह ज्ञान लिया है अर्थात् आपका अहंकार एबसेन्ट है। आप जो ऐसा मानते थे, 'मैं चद्रूभाई हूँ' अब वैसा नहीं मानते हो न? तो हो गया! 'मैंने वकालत की और मैंने उसे छुड़वाया, मैंने उसे ऐसा किया!'
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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