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________________ सहजता हमारी आज्ञा के अनुसार चलोगे, तो निरालंब की ओर ही चल रहे हो। फिर धीरे-धीरे शब्द का अवलंबन छूट जाएगा और अंत में निरालंब होकर रहेगा। निरालंब अर्थात् फिर किसी की भी ज़रूरत नहीं पड़ेगी। अगर सबकुछ चला जाए तो भी घबराहट नहीं होगी, भय नहीं लगेगा, कुछ भी नहीं होगा। किसी के अवलंबन की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। अब धीरे-धीरे आप उसी तरफ चल रहे हैं। अभी आप 'शुद्धात्मा हूँ', किया करो, उतना ही बहुत है। प्रश्नकर्ता : अर्थात् आत्मदर्शन के बाद जो स्थिति आएगी, वह बिल्कुल निरालंब स्थिति ही हो सकती है न? दादाश्री : निरालंब होने की तैयारियाँ होती रहती है। अवलंबन कम होते जाते हैं। अंत में निरालंब स्थिति प्राप्त होती है। अर्थात् आप सभी मेरे पास शुद्धात्मा प्राप्त करते हो। अब शुद्धात्मा का लक्ष आपको अपने आप निरंतर ही रहता है, सहज रूप से रहता है, याद नहीं करना पड़ता, आपको चिंता-वरीज़ नहीं होती, संसार में क्रोधमान-माया-लोभ नहीं होते, तो भी वह मूल आत्मा नहीं है। आपको शुद्धात्मा (पद) प्राप्त हुआ है, इसका मतलब कि आप मोक्ष के पहले दरवाज़े में घुस गए हो। अतः आपका यह तय हो गया कि अब आप मोक्ष को प्राप्त करोगे। लेकिन मूल आत्मा तो इससे भी बहुत आगे है। यह आपका शब्द का अवलंबन छूट जाएँ, इसके लिए, इन पाँच आज्ञा का पालन करने से धीरे-धीरे दर्शन दिखाई देगा। दिखाई देते-देते खुद के सेल्फ में ही अनुभव रहा करेगा। फिर शब्द की ज़रूरत नहीं पडेगी। अर्थात् शॉर्ट कट में तो आ गए न!
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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