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________________ १) सहज 'लक्ष' स्वरूप का, अक्रम द्वारा प्रश्नकर्ता : दिखाई देता है । दादाश्री : यह जो 'दिखाई देता है' उसका क्या अर्थ है ? उसके बाद आपको हमेशा ध्यान रहता है न, कि इस डिब्बी में हीरा है । फिर क्या ऐसा कहते हो कि यह डिब्बी ही है या फिर इस डिब्बी में हीरा है, ऐसा कहते हो ? प्रश्नकर्ता : लेकिन दादा, ऐसा होता है कि रास्ते में जाते समय शुद्धात्मा देखते हुए जाते हैं लेकिन जैसे एक चीज़ देखी कि इस डिब्बी में हीरा ही है, तो जिस तरह से वह दिखाई देता है, उतना स्पष्ट इसमें नहीं दिखाई देता। दादाश्री : स्पष्ट देखने की ज़रूरत भी नहीं है । प्रश्नकर्ता : वह तो फिर मिकेनिकल लगता है । दादाश्री : नहीं-नहीं ! वह तो आपको ऐसा लगता है कि देखा हुआ है। अपने लक्ष में रहता ही है कि हीरा ही है । दिव्यचक्षु के उपयोग से ... इन सभी में शुद्धात्मा देखते हो क्या ? प्रश्नकर्ता : देखता हूँ लेकिन कभी-कभी विस्मृत हो जाता है। दादाश्री : ऐसा नहीं कि कभी-कभी विस्मृत हो जाता है लेकिन कभी-कभी तो देखते हो न ? प्रश्नकर्ता : हाँ, देखता हूँ । दादाश्री : यदि उसे देखने का अभ्यास करोगे तो पूरे दिन समाधि रहेगी। जब एक घंटे के लिए यों ही ऐसे बाहर निकले तब शुद्धात्मा देखते-देखते जाएँ तो क्या कोई हमें डाँटेगा कि क्या देख रहे हो ? इन आँखों से रिलेटिव दिखाई देगा और अंदर की आँखों से शुद्धात्मा दिखाई देगा। ये दिव्यचक्षु हैं। आप जहाँ देखोगे वहाँ दिखाई देगा। लेकिन पहले उसका अभ्यास करना पड़ेगा, फिर सहज हो जाएगा। फिर अपने आप
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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