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________________ सहजता मन में ऐसा होता है कि मुझे सभी जगह प्रकाश फैलाना पड़ेगा? नहीं! कहेंगे कि 'आप आ गए उतना ही बहुत हो गया, आप प्रकाश मत फैलाना। माथापच्ची मत करना। ऐसी माथापच्ची में आप कहाँ पड़ गए।' आप आए उतना ही हमारे लिए बहुत हो गया। अर्थात् ऐसा तो होगा ही, उन्हें प्रयत्न नहीं करने पड़ते। वह सहज चीज़, स्वाभाविक चीज़ है। हमारी आज्ञा में रहना वहाँ प्रयत्न व पुरुषार्थ की ज़रूरत है। वह पुरुषार्थ वाली चीज़ है। अन्य सभी जगह पर तो सहज ही होता रहता है। अपने आप ही उसका फल आता है। एक सेठ कार में जा रहे हों और अचानक एक्सिडेन्ट (दुर्घटना) हो जाए, तब उन्हें अस्पताल ले जाते हैं। उनका पैर काटना पड़ता है और फिर चलने के लिए उन्हें लकड़ी का सहारा लेना पड़ता है। अब, वे सो जाते हैं। फिर नींद में से जागने पर तुरंत ही उन्हें खुद को सहज भाव से याद आएगा। सब से पहले उन्हें लकड़ी याद आएगी। इस प्रकार सहज रूप से ध्यान बैठना, वह 'केवल दर्शन' है। एक बार कॉलेज में पास हो जाने के बाद, क्या उसे भूल जाते हैं? प्रश्नकर्ता : नहीं। दादाश्री : उसी प्रकार, एक बार आप शुद्धात्मा हो गए, तो वह कैसे भूल सकते हो? कॉलेज में फेल हो गए, उसे भी कैसे भूल सकते हो? पास हुए तो उसे भी कैसे भूल सकते हो? आत्म दृष्टि की जागृति प्रश्नकर्ता : चंदूभाई और आत्मा अलग हैं, ऐसा सहज रूप से पता चलना चाहिए या हमें प्रयत्न करना चाहिए, प्रैक्टिकली? दादाश्री : नहीं! वह तो जागृति ही कर देगी। वैसी जागृति रहती ही है। जैसे कि यदि हमने एक डिब्बी में हीरा रखा हो, तो जिस दिन डिब्बी खोली थी, उस दिन हीरा देखा था। लेकिन फिर डिब्बी बंद करके रख दी, फिर भी हमें उसके भीतर हीरा दिखाई देता है। नहीं दिखाई देता?
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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