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________________ नहीं करना कुछ भी, केवल जानना है १३५ दादाश्री : कोई ज़रूरत नहीं पड़ती। वहाँ कॉज़ेज़ करने वाला ही चला गया! सिर्फ इफेक्ट रह गई। प्रश्नकर्ता : तो फिर वह आप कहते हो न, कि जब तक अहंकार साइन नहीं करता तब तक क्रिया में नहीं आता, तो फिर वह अहंकार कौन सा है? दादाश्री : डिस्चार्ज अहंकार। प्रश्नकर्ता : तो इस डिस्चार्ज अहंकार की क्रिया में, इसके परिणाम में क्या फर्क होता है? दादाश्री : सहज! प्रयास करने वाला नहीं रहता, सहज होता है। प्रश्नकर्ता : हाँ! लेकिन उसमें वह सहज होता है और वह प्रयास करने वाला अहंकार नहीं रहता, लेकिन डिस्चार्ज अहंकार तो इसमें रहता है न? दादाश्री : उसमें कोई हर्ज नहीं है। वह तो रहेगा ही न! वह तो, उसका तो सब मृत। उसे ही सहज क्रिया कहते हैं। 'देखने' से चले जाते हैं अंतराय, नहीं कि हटाने से प्रश्नकर्ता : मोक्ष प्राप्त करना, वह सहज है। उस सहज में जो अंतराय आते हैं, उसे रोकने के लिए यह पुरुषार्थ है ? दादाश्री : हाँ! लेकिन वह पुरुषार्थ अर्थात् सिर्फ 'देखना' है। अंतरायों को देखना है और कुछ नहीं करना है। हटाने में तो फिर हटाने वाला चाहिए। अर्थात् संयोगों को हटाना, वह गुनाह है। जो संयोग वियोगी स्वभाव के हैं, उन्हें हटाना, वह गुनाह है इसलिए हमें देखते ही रहना प्रश्नकर्ता : लेकिन दादा, यह बात सच है कि मोक्ष प्राप्त करने में उसका पुरुषार्थ करने में कुछ भी कर्तापन नहीं है, क्या वह ठीक है? दादाश्री : वह चीज़ सहज है।
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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