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________________ १३४ सहजता प्रश्नकर्ता : तो फिर प्रयास करने से क्या परिणाम आता है ? दादाश्री : वह तो सिर्फ, उसका अहंकार है, 'मैं कर्ता हूँ। प्रश्नकर्ता : उससे अगले जन्म की ज़िम्मेदारी बंध जाती है क्या? दादाश्री : हाँ! अगले जन्म की ज़िम्मेदारी लेता है, क्योंकि वह रोंग बिलीफ हैं। प्रश्नकर्ता : और यदि वह रोंग बिलीफ छूट जाए तो क्या प्रयास करने वाला चला गया कहलाएगा? दादाश्री : फिर अप्रयास दशा, सहज हो गया। हम खाते हैं, पीते हैं, वह सब सहज कहलाता है। प्रश्नकर्ता : तो जब रोंग बिलीफ थी तब प्रयास करने वाला कहलाया, उन रोंग बिलीफों के जाने के बाद फिर क्या होता है ? दादाश्री : कुछ नहीं होता, दखल चला जाता है। प्रश्नकर्ता : लेकिन जिसे रोंग बिलीफ थी उसका अस्तित्व फिर रहता है क्या? दादाश्री : एक तरफ आत्मा और एक तरफ यह देह, अप्रयास देह, मन-वचन-काया। उसके बाद पुद्गल तो है ही लेकिन वह बीच में इगोइज़म वाला भाग चला गया। जिसे स्ट्रेन होता था वह चला गया, थकान होती थी वह चला गया, ऊब जाता था वह चला गया, वे सब चले गए। प्रश्नकर्ता : तो रहा कौन? दादाश्री : कोई नहीं, यह सहज रहा। किसी दूसरे का बीच में दखल नहीं रहा। प्रश्नकर्ता : यह देह की जो क्रिया करनी पड़ती है, वाणी है, लेकिन उसमें अहंकार की ज़रूरत तो पड़ती है न?
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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