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________________ अंत में प्राप्त करना है अप्रयत्न दशा १२७ प्रश्नकर्ता : यदि अंतिम दशा का पिक्चर सामने होगा तभी वहाँ तक पहुँच पाएँगे न? दादाश्री : तभी जा सकते हैं। यह एक पिक्चर अंतिम दशा का देता हूँ। सिर्फ आवश्यक ही रहेगा। वहाँ थाली या लोटा नहीं होता और आवश्यक के लिए भी पेशाबघर आने तक राह नहीं देखता। वह सहज, वहाँ पर ही, गाय-भैंसों के समान। उन्हें शर्म वगैरह कुछ नहीं होती। गाय-भैंसों को शर्म आती है क्या? क्यों, इस लग्न मंडप के नीचे गाय खड़ी हो तो भी? उस समय वे विवेक नहीं करती? प्रश्नकर्ता : ज़रा भी नहीं, किसी का विवेक नहीं करती। सभी के कपड़े बिगाड़ देती है। तो ऐसी सहज स्थिति के समय खुद का उपयोग कैसा रहता होगा? दादाश्री : बिल्कुल कम्प्लीट ! यदि देह सहज तो आत्मा बिल्कुल कम्प्लीट! प्रश्नकर्ता : तो बाहर के तरफ उसकी दृष्टि ही नहीं होती? दादाश्री : वह सब कम्प्लीट होता है। बाहर वह सब दिखाई देता है। दृष्टि में ही आ गया सबकुछ और वह ही है सहज आत्मस्वरूप, वह परम गुरु है। जिसका आत्मा इस तरह से सहज रहता हो, वही परम गुरु प्रश्नकर्ता : तो फिर ये जो अभी कहते हैं न कि यह, जो पेशाब घर ढूँढते हैं या शर्म आती है, वह किसे? वह क्या चीज़ है? दादाश्री : विवेक तो रहा ही न? वह सहजता से नहीं रहने देता। सहजता में तो कुछ भी विवेक नहीं होता। सहजता में तो वह कब खाएगा कि जब उसे कोई दे तब खाएगा, वर्ना, माँगना भी नहीं, उसका विचार भी नहीं, कुछ भी नहीं। अगर भूख लगी हो तो उसमें भी खुद नहीं रहता। प्रश्नकर्ता : जब भूख लगे तब क्या करता है? दादाश्री : कुछ भी नहीं।
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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