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________________ १२६ सहजता कुछ नहीं हो तो चलेगा। पानी है, खाना है, हवा है, वे सभी आवश्यक चीजें हैं। क्या ये काम की बात है ? प्रश्नकर्ता : ठीक है। दादाश्री : अब, अनावश्यक कम हो जाए ऐसा भी नहीं है । कोई कहेगा, मुझे कम करना है फिर भी नहीं होता । बेटे की पत्नी फरियाद करती है, घर में पत्नी किच-किच करती रहती है। लेकिन मन में ऐसा भाव रहता है कि मुझे कम करना है । इतना भाव हुआ तो भी बहुत हो गया। ऐसा है न, हमें जिंदगी में आवश्यक और अनावश्यक दोनों का लिस्ट बना लेना चाहिए। अपने घर में हर एक चीज़ देख लेनी चाहिए और आवश्यक कितनी है और अनावश्यक कितनी है । अनावश्यक के ऊपर से हमें भाव हटा लेना चाहिए और आवश्यक के साथ तो भाव रखना ही पड़ेगा, कोई चारा ही नहीं है न ! जितना ज़्यादा अनावश्यक, उतनी ज़्यादा उपाधि । आवश्यक भी उपाधि ही है उसके बावजूद उसे उपाधि नहीं कहते, क्योंकि वे ज़रूरी हैं लेकिन अनावश्यक वे सभी उपाधि हैं। हर एक चीज़, सबकुछ आवश्यक, कुछ भी सोचे बगैर सहज होनी चाहिए। अपने आप हो जाए। जैसे कि पेशाब करने के लिए राह नहीं देखनी पड़ती। अपने आप ही हो जाती है और वह जगह भी नहीं देखती। जबकि इन्हें तो, बुद्धिशालियों को जगह देखनी पड़ती है। उन्हें तो जहाँ पेशाब करना हो वहाँ हो जाए, उसे आवश्यक कहते हैं। सहजता की अंतिम दशा कैसी ? प्रश्नकर्ता : यह तो एकदम अंतिम दशा की बात हुई न ? दादाश्री : अंतिम ही है न! और दूसरी कौन सी? अंतिम दशा को ध्यान में रखकर अगर हम आगे की दशा में बढ़ते जाएँगे तो ऐसी दशा उत्पन्न होगी लेकिन अगर आगे की ही दुकान बढ़ाते गए तो ? अंतिम दशा देर से आएगी।
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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