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________________ अंत में प्राप्त करना है अप्रयत्न दशा १०९ प्रश्नकर्ता : तो फिर मनुष्य देह को उनसे ज़्यादा अच्छा कैसे मानेंगे? दादाश्री : यह मोक्ष के लायक हो गया है। प्रश्नकर्ता : मोक्ष क्या है? दादाश्री : मोक्ष अर्थात् खुद की अंतिम, स्वाभाविक दशा। प्रश्नकर्ता : यदि वह भी सहज रूप से ही आने वाली है तो मनुष्य को प्रयत्न भी क्यों करना चाहिए? दादाश्री : वह सहज रूप से ही आ रही है। प्रश्नकर्ता : तो फिर प्रयत्न करने की कोई ज़रूरत ही नहीं न? दादाश्री : प्रयत्न कोई करता ही नहीं है। ये जो प्रयत्न करते हैं, वे तो खुद अहंकार करते हैं। 'मैंने यह प्रयत्न किया।' प्रश्नकर्ता : मैं यहाँ पर आया तो मैं ऐसा ही मानता हूँ कि मैं प्रयत्न करके आया। दादाश्री : वह तो, आप ऐसा ही मानते हो कि मैं यह कर रहा हूँ। मैं जानता हूँ कि आप सहज रूप से आए हो और आपका इगोइज़म आपको ऐसा दिखाता है कि मैं था तो हुआ, हम मिले, ऐसा हुआ, वैसा हुआ और आप एडजस्टमेन्ट ले लेते हो। बस, उतना ही हुआ। सभी क्रिया स्वाभाविक हो रही हैं। प्रश्नकर्ता : तो फिर करने जैसा कुछ रहता ही नहीं? दादाश्री : नहीं करने जैसा भी नहीं रहता। प्रश्नकर्ता : नहीं करने जैसा तो करते ही नहीं। दादाश्री : करने जैसा भी नहीं रहा और नहीं करने जैसा भी नहीं रहता। प्रश्नकर्ता : तो क्या करना है ? दादाश्री : संसार, जानने जैसा है।
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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