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________________ १०८ सहजता है उसे लोग कहते हैं, 'मैंने ऐसा किया और वैसा सब किया।' यह सब किस तरह से समझ में आएगा ? और किसी ने बनाया नहीं । किसी ने किया नहीं, करने जैसा है भी नहीं । यह तो, ओन्ली साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स हैं । प्रश्नकर्ता : तो इस अक्रम ज्ञान को प्राप्त करने के लिए सभी को क्या प्रयत्न करने चाहिए ? दादाश्री : प्रयत्न कोई करता ही नहीं । प्रश्नकर्ता : तो फिर, आपके पास आने की क्या ज़रूरत है ? दादाश्री : मेरा पड़ोसी भी कोई प्रयत्न नहीं करता और मैं भी पड़ोसी को नहीं कहता कि अक्रम ज्ञान ले लो । जो यहाँ पर आए, मुझसे मिले, उनसे मैं बात करता हूँ, वर्ना, नहीं करता । प्रश्नकर्ता : करने की ज़रूरत भी क्या है ? दादाश्री : नहीं, सहज भाव से जो हो जाए, वह अच्छा है। प्रश्नकर्ता : सहज भाव से जो होना है वह तो होता ही रहता है। दादाश्री : हाँ, उसके जैसा ही । हमें और कोई दखल नहीं करना है। अभी तो, आपके साथ सहज भाव से ही ये सारी झंझटें हैं। इसमें नया कोई दखल नहीं है । सिर्फ, आप सहज भाव में नहीं हो। हम तो सहज भाव में ही रहते हैं । अब, आप सहज भाव में आने का प्रयत्न कर रहे हो। हैं। ये फॉरेन वाले, वे तो बेचारे सहज ही हैं । ये गाय-भैंसें भी सहज I प्रश्नकर्ता : ऐसा तो मुझे बहुत बार लगता है, ये जो गाय-भैंसें और ये सभी जो जानवर हैं न, इनमें राग या द्वेष नहीं हैं । और भी... इसलिए ऐसा लगता है कि मनुष्य के बजाय तो ये लोग ज़्यादा सुखी हैं। I दादाश्री : क्योंकि वे रक्षित हैं और वे तो आश्रित हैं और कोई आश्रित दुःखी नहीं रहता । ये तो सिर्फ हिन्दुस्तान के लोग ही निराश्रित हैं।
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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