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________________ [8] अंत में प्राप्त करना है अप्रयत्न दशा बाधक अहंकार, नहीं कि संसार प्रश्नकर्ता : इस संसार की जो जवाबदारियाँ अदा करनी हैं, उनमें सहज कैसे रह सकते हैं ? दादाश्री : नहीं रह सकते । वैसा सहज योग तो कोई अरबों में एकाध व्यक्ति ही कर सकता है, किसी समय ! सहज रूप से तो, ये सभी बातें करने जैसी नहीं हैं । उसके बजाय कोई दीपक प्रकट हुआ हो, उन ज्ञानी से कहेंगे, ‘साहब, मेरा दीपक प्रकट कर दो।' तो वे प्रकट कर देंगे। झंझट खत्म हो गई। हमें दीपक प्रकट करने से ही मतलब है न ? ज्ञानमार्ग पर सहज रहा जा सकता है । हम तो निरंतर सहज ही रहते हैं, निरंतर सहज ! फिर संसार की जवाबदारियाँ बाधक नहीं होती क्योंकि संसार ऐसी चीज़ है कि आसानी से चले। जैसे कि खाने के बाद अंदर सहज रूप से चलता है उसके बजाय बाहर ज़्यादा सहज रूप से चलता है। देह तो अपना काम कर ही लेगी। हमें देखते रहना है। वह व्यवस्थित के ताबे में है, अपने ताबे में नहीं है । वह खाएगी - पीएगी, घूमना- -फिरना सबकुछ करेगी । व्यवस्थित का अर्थ क्या है कि सहज भाव से जो भी हो उसे किए जाओ। देह रूपी कारखाने को चलाता है कौन ? इस एलेम्बिक के कारखाने में कितने सारे लोग काम करते हैं, तब जाकर कैमिकल बनते हैं और वह भी एक ही कारखाना है, जबकि यह देह तो अनेक कारखानों की बनी हुई है, लाखों एलेम्बिक के कारखानों
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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