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________________ अंत:करण में दखल किसकी? होती है तब बुद्धि दौड़ाते हैं, तब कहते हैं कि बुद्धि चलाई, तो बुद्धि क्या है? दादाश्री : जो अजंपा (बेचैनी, अशांति, घबराहट) करे, वह बुद्धि है। प्रज्ञा में अजंपा नहीं होता। हमें ज़रा सा भी अजंपा हुआ तो समझ जाना कि बुद्धि का चलन है। यदि आपको बुद्धि का उपयोग नहीं करना हो तो भी उसका उपयोग होता ही है। वही आपको शांति से नहीं बैठने देती है। वह आपको 'इमोशनल' करवाती है। उस बुद्धि से हमें ऐसा कहना चाहिए कि 'हे बुद्धि बहन! आप अपने मायके चली जाओ। अब आपके साथ हमें कुछ लेना-देना नहीं है।' सूर्य का उजाला होने के बाद मोमबत्ती की ज़रूरत है क्या? अर्थात् आत्मा का प्रकाश होने के बाद बुद्धि के प्रकाश की ज़रूरत नहीं रहती। अंतःकरण, वह पिछला परिणाम प्रश्नकर्ता : मन-बुद्धि-चित्त-अहंकार पर अपना प्रभाव पड़ना चाहिए न? दादाश्री : मशीन पर कभी भी प्रभाव नहीं पड़ता, अर्थात् मन-बुद्धि-चित्त-अहंकार पर प्रभाव पड़ता ही नहीं। वह तो, यदि अंत:करण खाली हो जाए तो अपने आप सब ठीक हो जाता है। अक्रम मार्ग के महात्माओं के अंतःकरण की स्थिति कैसी रहती है? उनकी दखलंदाजी बंद हो जाती है। लेकिन जब पिछले परिणाम आते हैं तब खुद उलझन में पड़ जाते हैं कि यह 'मेरा' ही परिणाम है। जबकि उससे पूछे कि, 'खुद के परिणाम है या किसी और के?' तब मैं कहता हूँ कि, 'ये तो किसी और के परिणाम हैं।' । यदि हम उनका साथ नहीं दें और उन्हें 'देखते' ही रहें तो हम अलग ही हैं। जब तक हम उन्हें देखते रहेंगे, तब तक चित्त की शुद्धि होती रहेगी। यदि सिर्फ चित्त ही ठीक हो जाए तो सबकुछ ठीक हो जाएगा। अशुद्धि के कारण चित्त भटकता रहता है इसलिए चित्त की शुद्धि होने तक ही यह योग ठीक से बिठा लेना है।
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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