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________________ ८४ सहजता दादाश्री : हमें नहीं लगाना है, अपने आप सब चलता रहेगा। फील्ड वगैरह सब है। लाए हुए आटे को फिर से पीसने की आपको ज़रूरत नहीं है। अंदर इतना बड़ा साइन्स चलता है! यदि एक ही दिन अंदर थोड़ा बाईल्स या कुछ कम पड़ जाएगा तो खत्म हो जाएगा। अंदर बहुत ज़बरदस्त चलता है, संभालने वाले हैं। यह बाहर तो आप निमित्त मात्र हो। आपमें पागलपन आ जाता है, 'यह मैं हूँ, मैं करता हूँ।' अरे, मैं कुछ नहीं करता। अगर आपको उन बाईल्स को डालने का कहा होता न, तो आप ज़्यादा डाल देते। क्या करते? कल अच्छा पचेगा। पकौड़े खाएँगे और लड्डू-जलेबी खाएँगे। अंदर ज़्यादा डाल देते। फिर दस दिन के बाद बिल्कुल भी खाया न जाए ऐसा हो जाता है क्योंकि उसने ज्यादा कोटे का उपयोग कर लिया। कुदरत ने जो कोटा तय किया है, वह ठीक है। सूझ से होता है निकाल सहज प्रश्नकर्ता : हमारी बुद्धि अंतर (भेद) करती है कि यह अच्छा और यह गलत? दादाश्री : वे बुद्धि से जो भेद किए हैं, वे काम में नहीं आते। जागृति से भेद करोगे, वे काम आएंगे। प्रश्नकर्ता : वह समझ में नहीं आया। दादाश्री : बुद्धि तो इमोशनल करवाती है। उससे जो भेद किए हैं, वे अपने किस काम के? ज्ञान ही इटसेल्फ (स्वयं) भेद करता है कि यह सही नहीं है और यह सही है, वह सूझ पड़ती ही रहती है। आगेआगे सूझ पड़ती रहती है और मन के डिस्चार्ज में आदर करने योग्य कुछ है ही नहीं। जो आदर करने योग्य है, वह अपने आप सहज ही हो जाता है। ज्ञान जागृति, जो सूझ है, वह सब अलग ही कर देती है। बुद्धि या प्रज्ञा, डिमार्केशन क्या? प्रश्नकर्ता : यह काम प्रज्ञा ने किया है या बुद्धि ने, उसका पता किस तरह से चलेगा? बुद्धि और प्रज्ञा की व्याख्या क्या है? कुछ बात
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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