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________________ 18 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) प्रश्नकर्ता : गाँव के रीति-रिवाज थे न, वे! और दादा, पहले के समय में तो ऐसा था कि लंबी कमीज़ पहना देते थे न, तो फिर चड्डी पहनने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी। दादाश्री : लेकिन वे बच्चे थे ही ऐसे, घर आकर सभी कपड़े निकाल देते थे। जैसे उसे बहुत गरमी लग रही हो! और उस घड़ी माँ कहती भी थीं, 'अरे, दिगंबर! कपड़े पहन'। तो तब से सुना हुआ है। दिगंबर कहना नहीं आता था इसलिए फिर, कहते थे 'देगंबर जैसा हूँ, देगंबर जैसा हूँ। मैं सोचता था 'यह दिगंबर क्या है ?' सुना इसलिए सोचता था कि दिगंबर क्या है? दिगंबर का अर्थ क्या है? दिशा रूपी कपड़े। दो शब्दों की संधि है, 'दिक्-अंबर'। दिक् यानी दिशा में से दिक् बना। अंबर यानी वस्त्र। दिशाएँ जिनका वस्त्र हैं, ऐसे दिगंबरी। दिगंबर अर्थात् भान ही नहीं था विषय का प्रश्नकर्ता : आजकल तो बचपन से ही कपड़े पहनाने की प्रथा है। दादाश्री : कपड़े पहनते हैं न, तो भान में आ जाते हैं लोग। आजकल तो एकाध साल के बच्चे को भी कपड़े पहनाते हैं। यानी कि भान में आ गया। पहले कपड़े ही नहीं पहनाते थे न, तो भान ही कहाँ से रहता? इसलिए विषय का विचार ही नहीं आता था तो फिर कोई झंझट ही नहीं। विषय की इतनी एडवान्स जागृति ही नहीं थी। प्रश्नकर्ता : यानी कि एक प्रकार से समाज का ऐसा प्रेशर था। ऐसा हुआ न? दादाश्री : नहीं! समाज का प्रेशर नहीं, माँ-बाप का झुकाव, संस्कार! तीन साल का बच्चा यह नहीं जनता था कि माँ-बाप के भी ऐसे कुछ संबंध हैं! इतनी सुंदर सीक्रेसी। जब ऐसा कुछ होता था तब बच्चे दूसरे रूम में सोते थे। ऐसे थे माँ-बाप के संस्कार! आजकल तो इधर बेडरूम और उधर बेडरूम। एक तरफ माँ को बच्चा होता है और
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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