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________________ ज्ञानी पुरुष (भाग-1) तो उधार लेकर किया। छोड़ा नहीं न! इतना सब, बहुत मज़बूत लोग। और पैसे की ना ही पेटियाँ थीं, तिजोरियाँ भी नहीं थीं। मान क्यों मिलता था? परिवार अच्छा था इसलिए। जो औरों के लिए ही जीते हैं, वैसे ही सब लोग यहाँ जन्मे। जो लोगों के लिए ही जीते हैं न, वैसे ही सब। मुझे तो गाँव के कितने ही बुजुर्ग कहते थे, 'भाई, आपकी तो क्या बात करें? कैसा घर! कितना अच्छा! किसी को दुःख नहीं, किसी को त्रास नहीं दिया।' ऐसा था इसलिए पैर छूते थे बुजुर्ग! कैसा दैवीय परिवार है! ऐसा सब कहते थे। कोई दुःख दे जाए न, तब भी उसे दुःख नहीं देते थे, ऐसी क्षत्रियता। अच्छा कहलाएगा न? प्रश्नकर्ता : हाँ, बहुत अच्छा। दादाश्री : और सम्मानसहित जीवन गुज़ारा था, इसलिए मान की पूरी भूख खत्म हो चुकी थी लेकिन जो अहंकार इकट्ठा हो गया था न, वह उछल-कूद मचाता था। ऐसा वैभव नहीं था लेकिन थी खानदानियत की कीमत ___वह खानदानी परिवार था, ऐसा जिन्हें अच्छा दहेज मिले। अब वहाँ पर जन्म हुआ था। जायदाद ज्यादा नहीं थी सिर्फ खानदान की ही कीमत थी। हमारी जायदाद कितनी थी? ननिहाल में साढ़े छः बीघा ज़मीन थी और दस बीघा भादरण में थी। प्रश्नकर्ता : दादा, आपने कहा था न, कि बहुत पुण्य हो तो ऐसी जगह पर जन्म होता है कि बंगले वगैरह सब तैयार ही मिलता है, तो आपका जन्म ऐसी कोई जगह पर क्यों नहीं हुआ? दादाश्री : कहाँ ? प्रश्नकर्ता : आपका जन्म वैभव में क्यों नहीं हुआ? दादाश्री : मैं वह सारा वैभव देखकर ही आया था। मुझे तो वैभव ज़रा भी अच्छा नहीं लगता था। मुझे तो बचपन से ही यदि कोई वैभव वाली चीज़ मिलती थी तो मुझे अच्छा नहीं लगता था।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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