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________________ टखना भी दिखाई नहीं देता था और.. 275 चचेरे भाईयों में थी ज़बरदस्त स्पर्धा 296 भाभी का चरित्र उच्च इसलिए दादा.. 275 मुझसे स्पर्धा करो और आगे आओ 297 कलियुग में इसी एक 'सती' को... 276 सामने वाले की जिस शक्ति की... 297 गर्व बहुत था उन पर, इसलिए वश.. 277 बिना तौले-बिना नापे वापस कर... 298 'देवर हमारे लक्ष्मण जी जैसे' 278 दादा के सख्त शब्द उतारें नशा 300 पावरफुल बुद्धि से समझाती थीं... 279 सिर दुःख जाए ऐसे शब्द बोल देते... 302 . उस धर्म ने ही उनका रक्षण किया 280 वेल्डिंग करने वाला हमेशा मार ही... 304 भाभी ने कहा, 'मुझे भी ज्ञान दो' 280 भतीजे ने संयोगवश कुछ ऐसा कहा.. 304 नहीं तोड़ सकते थे लोगों का आधार.. 281 ज़रूरत लायक पैसे लिए, इसलिए... 305 अंत में भगवान समझकर करते थे... 281 खानदानी इंसान को परेशान करना... 305 कर्म की उलझनें हुई नरम, फिर भी... 282 उससे उनकी भी इज़्ज़त रही और... 307 दिवाली बा करती थीं दादा की... 283 वह चोर नहीं है, उसे माँगना नहीं... 307 भाभी थीं न, इसलिए परेशान करते.. 283 खानदानी इंसान को चोर कैसे कह... 309 महाराज, मेरे अंबालाल को कुछ नहीं 285 का कुछ नही 280 ये दादा तो भगवान जैसे हैं 310 उन्होंने भाभी से अपना धर्म छोड़ने... 286 इतना करना आ जाएगा तो काम... 311 शुरू से ही भगवान में रुचि 286 माँगने से पहले पैसे देकर सामने... 312 दादा के ब्रह्मचर्य के बारे में... 287 उसका सगा भाई आक्षेप लगाता था... 313 संसार का मोह नहीं था 288 हमारी देखने की दृष्टि ही अलग है... 314 दादा और उनकी भाभी के बीच... 289 दादा को सौंपा तो सब रास्ते पर... 315 [9] कुटुंब-चचेरे भाई-भतीजे । जो पकड़ा जाता है वह नहीं... 317 ज्ञानी भी खिलौना, ब्लड रिलेशन... 291 संयोगवश चोर, वह चोर नहीं है... 318 अहंकार की लड़ाई लेकिन कपट... 292 प्रेजुडिस रहना, वह एक बहुत बड़ा... 318 भतीजे बड़े लेकिन विनय बहुत... 294 हम एक ही तरह के अभिप्राय वाले... 319 अगर बाहर वाला कोई कुछ कहे... 295 मैं मॉरल खरीद लेता था 320 60
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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