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________________ [10.6] विविध प्रकार के भय के सामने... मृत्यु का भय, तो ऐसा होता था कि यह तो चाहिए ही नहीं हमें प्रश्नकर्ता : दादाजी, बचपन में आपको डर लगता था? दादाश्री : बचपन में तो सभी डरते हैं, मैं भी डरता था। मैं तो जब छोटा था तब मुझे मृत्यु का भय लगता था। जन्म हुआ है तो मरेंगे तो सही। मैं काँप जाता था। बचपन से ही ऐसा लगता था कि यह सब हमें नहीं चाहिए। प्रश्नकर्ता : किसी की मृत्यु देखी थी? दादाश्री : मैंने बहुत कम उम्र में मृत्यु देखी थी। एक बार शादी में बंदूकची से बंदूक चलाने में गलती हो गई और वह मर गया। वहाँ पर बेहिसाब खून था! हम तो उस समय बारह साल के थे, तो घबरा गए तो अभी तक वह घबराहट रहती थी, ज्ञान होने से पहले तक। क्योंकि ऐसा सब देखा ही नहीं था न! बचपन में लगता था साँप और बिच्छू का डर प्रश्नकर्ता : और किस चीज़ का डर लगता था, दादा? दादाश्री : साँप से डर लगता था और भूत से डर लगता था। लोगों को तरह-तरह के वहम होते हैं न! उन दिनों ज़मीन पर बहुत से साँप, और बेहिसाब बिच्छू, बारह
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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