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________________ 386 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) जगत् तो पाप का ही संग्रहस्थान है। जहाँ पैर रखो, वहाँ पाप का संग्रहस्थान, तो मैंने बचपन से ही तय कर लिया था कि इस पाप के संग्रहस्थान में घूमने के बजाय दोपहर को दो घंटे सो जाऊँ, और वह भी वापस धर्म की पुस्तकें पढ़कर सो जाऊँ। प्रति क्षण दिखाई देता है विकराल इसीलिए नहीं होता मोह प्रश्नकर्ता : दादा, आपके उदाहरण बहुत ही सटीक होते हैं, तो वे उदाहरण कहाँ से आते हैं? दादाश्री : हमें बचपन से ही मोह नहीं था जानने की बहुत इच्छा थी, इसलिए हमें उदाहरण मिल आए। प्रश्नकर्ता : आपको बचपन से ही मोह क्यों नहीं होता था? दादाश्री : हमें इसका यह स्वरूप बचपन से ही दिखाई देता था, विकराल। हर क्षण भय वाला, प्रति क्षण दुःखदायी, प्रति क्षण परेशानी भरा दिखाई देता था इसलिए मूर्छा ही नहीं होती थी किसी भी जगह पर। किसी भी जगह पर टेस्ट ही नहीं आता था। __ और दूसरा, मुझे समझ में आ गया कि ये सारी कुदरती चीजें लोन पर हैं, तो कभी न कभी रीपे (चुकादा करना) करनी ही पड़ेंगी। दुनिया की चीजें मुफ्त में तो नहीं मिलतीं। वे तो, जो पे (दी) की हैं, वही मिल रही हैं इसलिए एक भी पैसा नहीं बिगाड़ना चाहिए, वर्ना रीपे करना (चुकादा करना) पड़ेगा। मुझे बाईसवें साल में अंदर से जवाब मिला कि 'तुझे जो लेना हो वह ले ले, लेकिन उसके लिए रीपे करना होगा'।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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