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________________ [9] कुटुंब-चचेरे भाई-भतीजे 305 तब मैंने दूसरी कुछ बातें करना शुरू कर दिया। मैंने उसकी बात को टालने का प्रयत्न किया। फिर भी उसने कहा कि, 'भाई। मैं अहमदाबाद गया था और अचानक चिमन भाई मिल गए। वे तो ऐसा कह रहे थे कि अंबालाल भाई के पास मेरे ही आठ-दस हज़ार रुपए उधार पड़े हुए हैं। मैं तुरंत ही समझ गया कि 'चिमन भाई ने किसी संयोगवश ऐसा कहा होगा, वर्ना चिमन भाई ऐसा कहें ही नहीं'। तब मैंने उसे कहा कि 'होगा, हिसाब में जो होगा वह ठीक है। वह तो बहीखाते में उनका जो लेना निकलता होगा, वह तो होगा ही न!' इस तरह के झंझट पैदा करने वाले लोग होते हैं! ज़रूरत लायक पैसे लिए, इसलिए वह चोर नहीं प्रश्नकर्ता : ज्ञान से पहले भी आपकी ऐसी समझ थी। यह तो ज़बरदस्त नोबिलीटी कही जाएगी! परिवार की ऐसी अन्य बातें हों तो बताइए न, दादा। दादाश्री : हमारे मामा का एक बेटा था। उसके पास जब खर्च करने को पैसे नहीं होते थे तो मेरी जेब में से निकाल लेता था। मैं देखता था कि पचास रुपए में से तीस ही बचे हैं, बीस कहाँ गए होंगे? लेकिन अगर लेने वाला चोर होता तो सभी ले जाता, अतः यह मेरे भाई का ही काम है। मैं शुरू से, अंदर ही अंदर, इसे जानता था कि इसके पास पैसों की कमी है और इसी ने लिए होंगे। उसने कई बार ऐसा किया फिर भी मैंने उसे कभी कुछ भी नहीं कहा। मामा का बेटा था, क्या उसकी इज्जत बिगाड़नी चाहिए? उसे हमारी जेब में हाथ डालने का अधिकार है। और कौन डाल सकता है? तो वह क्या करता था? कई दिनों से पैसे ले जा रहा था। हीरा बा को भी नहीं बताया। हीरा बा भी गुस्सा हो जातीं। यानी कि अगले दिन जब जेब देखने पर दस का नोट कम होता था, तब मैं समझ जाता था कि ये भाई ले गए। खानदानी इंसान को परेशान करना गलत है तब ये नीरू बहन मुझसे कहती हैं कि, 'फिर आप उनसे कुछ भी
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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