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________________ और पत्नी से कह दिया कि, 'यदि फिर से ऐसा होगा तो मैं गृह त्याग कर लूँगा। उनसे ऐसा प्रण करवाया कि कोई भी व्यक्ति रात को तीन बजे भी आए तो भी उसे खाने का पूछना है, ज़रा सा भी मन नहीं बिगड़ना चाहिए', उसके बाद से घर में कभी एक दूसरे के प्रति भाव नहीं बिगड़ा। जो कुछ भी हो, प्रेम से वही खाने के लिए रख दो लेकिन भाव नही बिगाड़ना है। बा छोटी-छोटी बातों में भी अंबालाल भाई से पूछते थे। जब बा अस्सी साल की हुईं तब अंबालाल भाई चवालीस साल के थे तब भी उनसे पूछती थीं। वे कहती थीं कि, 'स्त्री को मनचाहा नहीं करना चाहिए। घर में छोटा बेटा हो तब भी वह घर का मालिक कहलाता है, उसे पूछना पड़ता है'। उनका आफ्रिका जाने का संयोग आया लेकिन बा को अंबालाल के प्रति अत्यंत प्रेम था इसलिए नहीं जाने दिया। और मदर को भी ऐसा था कि परदेस नहीं भेजना है। उन्हें अपना मनचाहा मिल गया। अगर वहाँ गए होते तो पैसे कमाते लेकिन फिर लोगों की गुलामी करनी पड़ती। वह नहीं पुसाएगा! यहाँ पर रहकर तो आखिर में भगवान को ढूँढ निकालने की इच्छा थी, तो अंत में उनका यह ध्येय सिद्ध हो गया! बड़ौदा में फ्रेन्ड के यहाँ जाते थे तो वे खाना खाने बैठा देते थे। कोई जान-पहचान वाले मिलते तो वे भी खींचकर अपने यहाँ खाना खाने के लिए ले जाते, वहाँ भी थोड़ा खा लेते। फिर वापस घर आकर मदर के साथ खाना ही पड़ता था। अगर मदर के साथ नहीं खाते तो मदर को दुःख होता, इसलिए एक ही समय पर तीन-तीन बार खाना खाया। सभी के मन का समाधान करने के लिए खुद ने इस तरह से एडजस्टमेन्ट लिए। जब मदर की उम्र छिहत्तर साल थी तब बा के आखिरी आठ सालों में वे उनके पास ही रहे। मदर को उनके प्रति बहुत ही अटैचमेन्ट था, मेरा “अंबालाल"... करती रहती थीं। उनकी मदर उनसे कहती थीं कि 'मेरी जिंदगी में तो मैं सिर्फ तुझे ही मानती हूँ कि अगर दर्शन 36
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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