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________________ 276 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) थीं लेकिन इस बारे में राग भी था। लोग तो ऐसा ही समझते थे कि, 'इन दोनों का पूर्व जन्म का ज़बरदस्त बैर है!' फिर भी उनके प्रति भाभी के तौर पर कभी भी भाव नहीं बिगाड़ा। मुझे उनके प्रति अच्छा भाव क्यों रहता था? क्योंकि उनमें एक मुख्य गुण था, पराये पुरुष की तरफ दृष्टि नहीं की थी कभी भी'। चरित्र उच्च था तो वह बहुत अच्छा कहा जाएगा न ! कितना बड़ा गुण कहा जाएगा! प्रश्नकर्ता : बहुत बड़ा। दादाश्री : हमारे परिवार में यह गुण है। पहले बा वैसी थीं, फिर हीरा बा भी वैसी थीं, और ये भाभी भी वैसी। पूरा परिवार कैसा? अद्भुत परिवार कहा जाएगा। कलियुग में इसी एक 'सती' को देखा था हमने अभी (1986 में) वे अस्सी साल की हो चुकी हैं। पचास साल से विधवा हैं। पचास साल विधवा की स्थिति में बिताए। पचास-पचास साल तक विकराल काल बिताया न? प्रश्नकर्ता : हाँ, पचास साल। दादाश्री : तीस साल की उम्र में विधवा हो गई थी, लेकिन चरित्र के बारे में कभी भी कोई शिकायत नहीं। एटिकेट वाली स्त्री थीं! अच्छे कपड़े-वपड़े पहनने की छूट थी फिर भी नहीं पहनती थीं। यों योगिनी की तरह। क्या आपको लगता है कि उनमें कोई योगिनी जैसे गुण हैं ? योगिनी अर्थात् जिसने पराये पुरुष के सामने दृष्टि तक नहीं डाली। दृष्टि नहीं बदली कभी भी। इसी वजह से, वे चाहे कुछ भी कहें, मैं करने को तैयार हूँ क्योंकि हमारे गाँव में उनके चरित्र को लेकर कभी भी शिकायत नहीं आई। कोई उनके लिए कुछ भी नहीं कह सकता था, उन पर उँगली नहीं उठा सकता था इसलिए वे जो भी कहें, मैं उनके (खुद के) लिए वह करता हूँ। और यदि वे कहें कि, 'आप भोले हो,' तो मैं कहता हूँ, 'भोला हूँ। पवित्र लेडी (स्त्री), और दिखाई देता है न, प्योरिटी है! पहले से
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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