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________________ [8.1] भाभी के साथ कर्मों का हिसाब 249 की ही झंझट। उसे क्या अच्छा कहेंगे? वह सारा तो पागलपन कहा जाएगा, उसमें मज़ा नहीं है। प्रश्नकर्ता : नहीं, ऐसा नहीं, लेकिन उस समय भी इतनी सूझ थी कि बेईमानी से नहीं जीना है। दादाश्री : वह सब तो था। प्रश्नकर्ता : किसी का भी सहन नहीं करना है, घी के प्रति राग नहीं छोड़ना है। दादाश्री : हाँ। प्रश्नकर्ता : उस समय घी के प्रति जो राग था उसमें कोई परिवर्तन आया? दादाश्री : किसके प्रति? प्रश्नकर्ता : घी कम दिया था इसलिए! दादाश्री : नहीं, परिवर्तन आता होगा कहीं? जिनमें परिवर्तन आए वे अलग। ऐसी मान्यता बना दी थी कि घी शरीर का तेज है और ऐसा सब है, और वे सारी मान्यताएँ मान ली थीं, इसलिए चला। फिर भी घी बहुत हितकारी चीज़ नहीं है, नॉर्मेलिटी में अच्छा है। जबकि मुझे तो कटोरी में डुबोकर वेढमी खानी होती थी। जगत् को यह किस तरह पुसाता? हमारी भाभी तो हमारी गुरु थीं। मैं उनसे कहता हूँ कि 'आप मेरी गुरु हैं, मुझे इस मार्ग पर धकेला। इस मोह में से छुड़वाया!' बड़े भाई ने कहा, 'अरेरे! तुझे इतनी परेशानी!' प्रश्नकर्ता : फिर क्या भाई को पता चला कि भाभी आपको परेशान करती हैं? दादाश्री : हाँ, एक बार उन्होंने खुद अपने आप कहा कि, 'चल आ, हम होटल में चाय पीएँगे'। तब मुझे लगा, 'ये तो कभी साथ में
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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