SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 296
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [8.1] भाभी के साथ कर्मों का हिसाब 231 यों तो मैं किसी से नहीं लेता, लेने की आदत ही नहीं थी। हाथ फैलाना और मरना एक जैसा लगता था। निरा झूठ बोला लेकिन सच बोलकर तो माँग ही नहीं सकता था। हम क्षत्रिय लोग हैं, हमसे माँग नहीं पाते। किसी से माँगना हो फिर भी माँग नहीं पाते। माँगना ही नहीं आता। मैंने अगर आपको पैसे उधार दिए हों, फिर भी मुझे कभी वापस माँगना नहीं आता। फिर भले ही मैं बहुत परेशानी में रहूँ। तो इस प्रकार की आदत वाला इंसान हूँ मैं। लेकिन मेरी स्थिति ऐसी हो गई थी। पूरी जिंदगी में, इतनी लाइफ में, मुझे उस दिन मन में ऐसा लगा था, 'किसी से एक रुपया माँगना पड़ा? यह भी कोई तरीका है?' वर्ना मैंने तय किया था कि 'ये हाथ फैलाने के लिए नहीं हैं। दिए ज़रूर है, लेकिन ये हाथ फैलाने के लिए नहीं हैं। देते समय भी अहंकार से नहीं देना है। उसका हाथ भी फैलाने के लिए नहीं है, लेकिन वह परेशानी नहीं झेल सकता और मैं झेल सकता हूँ। ज्ञान के बाद नहीं रहा वह अहंकार हालांकि ये सारी बातें ज्ञान होने से पहले की हैं। उसके बाद तो ज्ञानी बन गया। अब कोई आपत्ति नहीं है। भीख माँगने को रहा ही नहीं न! अभी तो अगर कोई मुझे हाथ फैलाने को कहे तो, मैं यहाँ पर भिक्षा में भोजन माँगने भी जा सकता हूँ। कल अगर आप कहो कि 'दादा आप भिक्षा लेकर आओ' तो मैं भिक्षा ले आऊँगा क्योंकि अभी तो मुझे ऐसा कुछ है ही नहीं न! अभी तो मैं वहाँ जाकर कहूँगा कि 'बहन, एक रोटी और इतने चावल दे दीजिए'। हर जगह पर जाकर पूछ आऊँगा, मुझे तो कोई जुदाई नहीं है न! चाहे कहीं भी जाऊँ, कोई भी बहन खुश हो जाएँगी। वे तो बल्कि मुझे देखकर खुश हो जाएँगी। 'दादा, फिर से आएँ तो अच्छा'। ज़रूरत लायक ही पैसे लिए अब उन भाई ने रुपया निकालकर दिया और मुझसे कहा, 'और
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy