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________________ 196 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) जो बिल के पैसे लेने होते थे न, तब क्लर्क वगैरह जल्दी नहीं देते थे। वे बिल लेने पंचायत में जाते थे। उस समय अंदर घुसते ही पास वाले रूम में, पहले ऑफिस में ही हमारे चचेरे भाई, सूबेदार बैठे होते थे। तो बड़े भाई यहाँ से पंचायत के ऑफिस में जाते समय शोर मचाते हुए ही जाते थे और सभी क्लर्कों के सामने कहते थे कि 'अरे, हमारा वह चचेरा भाई, वह 'पाडा रांडवो' आया है या नहीं?' प्रेसिडेन्ट को, अब उसे ऐसा कहते थे, उस सूबेदार को और फिर वह सूबेदार भी वह सुनते थे। अब क्लर्क के सामने सूबेदार को 'पाडा रांडवो' कहते थे, तो उन क्लर्कों की क्या दशा होती होगी बेचारों की? वे घबरा जाते थे कि 'मणि भाई आया', ऐसा कहते थे! और अंदर ही अंदर वह सूबेदार भी घबराता रहता था कि 'आया मणि भाई, आया मणि भाई!' इसलिए फिर मणि भाई जब ऑफिस में घुसते थे तब क्लर्क तुरंत ही बिल निकालकर दे देते थे। 'तैयार नहीं हो फिर भी दे दो', ऐसा कहते थे। फिर सूबेदार कहते थे कि, 'मणि भाई बैठ, मैं कह देता हूँ, तेरा चेक अभी दे देंगे'। यों वे अंदर ही अंदर घबराते थे और जल्दी ही क्लर्क को बुलाकर कहते थे, 'पहले इन मणि भाई का चेक बना दो। तब मणि भाई कहते थे, 'मेरा चेक घर बैठे पहुँच जाना चाहिए'। 'हाँ, हाँ, घर बैठे भिजवा दूंगा' सूबेदार कहता था। न्यायी हिसाब-किताब नहीं था इसलिए हमें अच्छा नहीं लगता था __ वे ऐसा बोल देते थे, उनका कामकाज बहुत खराब था, न्यायी नहीं था, इसलिए मुझे अच्छा नहीं लगता था। बाकी बहुत मर्दानगी थी! बहुत ज़ोरदार इंसान, कुछ अलग ही तरह का ब्रेन फिर भी ऐसा तो नहीं कहना चाहिए। ऐसा तो कहना ही नहीं चाहिए। फिर वे सूबेदार आकर हमारी बा से कह जाते थे कि 'हमारे भाई लगते हैं। मैं क्या करूँ? ये ऐसा कहते हैं! 'पाडा रांडवो' कहते हैं। फिर मुझसे कहा, 'भाई ऐसा कह रहे थे ये मणि भाई, देखो न! क्या
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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