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________________ 130 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) वास्तव में क्षत्रिय समझदार नहीं माने जाते, संसारिक मामलों में समझदार नहीं माने जाते। प्रश्नकर्ता : दादा, ऐसा कहने वाले ही तीर्थंकर बने हैं। दादाश्री : बनेंगे ही न लेकिन ! उनमें अन्य कोई गाँठें नहीं होती न, गाँठें नहीं है तभी ऐसा कह सकते हैं न! और गाँठ वाला तो शब्दों की वेल्डिंग करके, पोलिश करके बोलता है। ये तो, अगर पोलिश किया हुआ हो तो उसे भी उखाड़कर बोलते हैं। और वणिक पुत्र? पागल माँ के समझदार बेटे, बहुत समझदार। उनमें समझदारी होती है, माँ पागल होती है। यह तो लोगों ने बताया है। यह मैं नहीं कह रहा हूँ, ऐसी कहावत है। मैं क्यों कहूँ? मैं क्यों इसमें पडूं? मुझे क्या लेना-देना? यह तो जो कहावत मैंने सुनी है, वह आपको बता रहा हूँ इसलिए कुछ बुरा मत मानना। हमें पागल कहा, वह बात मुझे पसंद आई कि हाँ! बात सही है क्योंकि मेरी माता जी को देखा था, वे क्षत्राणी जैसी थीं। यों कभी भी भल वाली नहीं लगीं, कोई दखल नहीं और हम तो मूल रूप से पागल ही थे। सरलता की वजह से बा के मना करते ही बंद प्रश्नकर्ता : दादा, बा ने आपको मारने से मना किया और मारना बंद हो गया, वह कैसे? दादाश्री : हाँ! हमारी सरलता की तो दाद देनी पड़ेगी! तब छोटा बच्चा था, जैसे मोड़ो वैसे मुड़ जाए। निष्कपटता! लेकिन बा ने करुणा दिखाई कि... प्रश्नकर्ता : ज्ञान फिट करवाया। दादाश्री : हाँ। उन्होंने कहा कि 'मैं तो तेरी बा हूँ और मैं तेरी सेवा करूँगी लेकिन उस बिन माँ के बच्चे को मारकर आया तो उस बेचारे का कौन करेगा अब?'
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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