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________________ 128 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) दादाश्री : हाँ, मारा था। शरारत भी की थी। ऐसा नहीं है शरारत नहीं की! मारा था, अच्छी तरह से मारा था लेकिन फिर बा ने मना किया कि 'अब मत मारना किसी को'। बा ने मना किया इसीलिए फिर नहीं किया। मूलतः तो जुनूनी। ज़रा कोई उकसाने वाला चाहिए कि 'साहब ये सब चढ़ बैठे हैं, आ जाओ', क्या कहते हैं ? फिर थे राजपूत तो वहाँ और क्या हो सकता था। क्षत्रिय राजपूत, अंदर बहुत ज़ोर था, ब्लड बहुत जोशीला था। क्षण भर में झगड़ पड़ते थे तो हल्दीघाटी जैसा युद्ध भी जम जाता था। झगड़ा शुरू हो जाता कि इस तरफ लोग लाठियाँ लेकर निकल पड़ते थे। अरे! क्यों यह ढिशुम, ढिशुम, ढिशुम? भुजाएँ फड़कने लगती थीं, जबकि इन लोगों ने तो एक सोटी भी नहीं लगाई! कैसी शक्ति? कभी सोटी मारना तो आया नहीं! डाँग से मारते थे, धडाम से। मुझे तो एक व्यक्ति डाँग से लगा गया था। तब मैं तुरंत नीचे बैठ गया था, बहुत लगी थी लेकिन अंदर कोई असर नहीं हुआ था। इन दोस्त और दोस्तों के झगड़े में। प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : झगड़े। हाँ, एक मतभेद हुआ कि उन लोगों की तो आ बनी। लड़कों की भुजाएँ भी मज़बूत। किसी-किसी की भुजाएँ इतनी मज़बूत नहीं दिखाई देती थीं, पतली दिखाई देती? प्रश्नकर्ता : लेकिन ताकत ज़्यादा। दादाश्री : अरे, वह ताकत भी कैसी ताकत थी! लोहे जैसी ताकत! और आश्चर्य की बात यह थी कि उन लोगों की भुजाएँ मज़बूत नहीं दिखाई देती थीं लेकिन यों देखो तो लोहे जैसी ताकत थी। उनकी हड्डियाँ इतनी मज़बूत भी और मन भी उतना मज़बूत था। 'मार खाकर आना, मारना मत' बचपन में एक बार किसी को एक छोटे से पत्थर से मारकर आया था तो उसे खून निकल आया। तब फिर, लोग मुझे मारने न आएँ, इसलिए मैं चुपचाप घर आ गया! झवेर बा को पता चल गया।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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