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________________ [4] नासमझी में गलतियाँ 113 पड़ी हुई मिली, मैंने कहाँ चोरी की? इस तरह यों सीधे चोरी नहीं करते थे। यों तो खानदानी घर के बेटे थे इसीलिए चोरी नहीं करते थे, कोई चीज़ उठा नहीं लेते थे क्योंकि वह तो हमारे खानदानियत से बाहर की बात थी। ऐसा बहुत बड़ा अहंकार था कि हम ऐसा कर ही नहीं सकते, इसलिए यों तो चोरी नहीं करते थे। हम खानदानी, हमारी इज़्ज़त चली जाती लेकिन क्या यह चोरी नहीं कहलाएगी? क्या कहलाएगा? प्रश्नकर्ता : चोरी ही कहलाएगी। दादाश्री : तो इसका अर्थ क्या निकाला? उन दिनों के ज्ञान ने मुझे ऐसा बताया कि इसे चोरी नहीं कहते। मुझे ऐसा लगा कि 'यह तो मुझे मिली है इसलिए इसे चोरी नहीं कहेंगे,' हमें नीचे गिरी हुई मिली। 'गिरी और मिली', उसमें मैंने चोरी कहाँ की? ऐसा उन दिनों के ज्ञान ने मुझे बताया। तेरह साल की उम्र में बुद्धि नहीं थी तभी यह हाल हुआ न ! प्रश्नकर्ता : लेकिन दादा, ऐसा कोई उदय आ गया होगा न! दादाश्री : लेकिन बुद्धि नहीं थी तब इसीलिए यह हाल हुआ न, और 'मिल गई', ऐसा माना। समझ नहीं थी, तभी न! प्रश्नकर्ता : लेकिन ऐसा तो तेरह साल की उम्र में हुआ था न? किसी को तो तिहत्तर साल की उम्र में भी ऐसा होता है। दादाश्री : हाँ, तिहत्तर साल की उम्र में नहीं, वह तो अगर तीन लाख जन्म बीतने पर भी ऐसा डेवेलपमेन्ट नहीं होता न! अंगूठी बेचकर पैसे उड़ा दिए प्रश्नकर्ता : फिर क्या हुआ? दादाश्री : फिर दो-तीन दिन बाद पेटलाद जाकर वह अंगूठी बेच आए। उसके चौदह रुपए मिले थे। पोन तोले की होगी, मोटी अँगूठी थी लेकिन यह कितनी चोर नीयत कही जाएगी।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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