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________________ 112 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) दादाश्री : वह तो, एक अंगूठी चोरी कर ली थी। वह अभी भी खटकता रहता है अंदर।। ___ मैंने अँगूठी चोरी की तो वह किस तरह से चोरी की थी, आपको तो पता नहीं है वह। लेकिन काठी मालूम है? करांठियाँ? लकड़ियाँ, जलाने की कांठियाँ, करांठियाँ आती हैं। अरहर की करांठी आती है, आपने देखी है? करांठी कहते हैं । तो उस करांठी के गट्ठर थे तो एक आदमी से गट्ठर खरीदे थे, तो मैं उनके यहाँ लेने गया। पिता जी के कहे अनुसार मैं एक मजदूर को लेकर बताने गया था। गट्ठर गिनने के लिए साथ लेकर गया था। वह आदमी ऊपर से फेंक रहा था और मैं गिन रहा था। मैं गिन रहा था और जिस नौकर को साथ ले गया था वह बाँधकर ले जा रहा था। तो फिर जब वह गट्ठर फेंक रहा था तब, उसकी उँगली में से अँगूठी खिसक गई। अब वह मुझे नहीं पता था कि उसकी अँगूठी खिसक गई है। अब ऐसा हुआ था या क्या लेकिन गट्ठर डालते वक्त अँगूठी नीचे गिर गई। अब उसकी खिसकी हुई अँगूठी गिर गई या फिर पहले से किसी की पड़ी हुई थी लेकिन एक अंगूठी नीचे गिरी। तो हमारा जो आदमी गट्ठर लेने आया था न, उसे मैंने उल्टी तरफ भेज दिया। मैंने उस नौकर से कहा, 'तू वे गट्ठर गिन ले। उन गट्ठरों को बाँधने लग,' तब तक मैंने उस पर (अँगूठी पर) पैर रख दिया। प्रश्नकर्ता : कितनी उम्र थी तब आपकी? दादाश्री : तेरह साल का था, उस समय अक्ल कहाँ से आती? क्षत्रिय पुत्र था फिर भी चोरी की दानत कहाँ से आ गई? लेकिन भरा हुआ माल है। मोह ! भरा हुआ मोह! इसीलिए फिर मैंने उस अंगूठी पर इस तरह से पैर रख दिया ताकि वह देख न सके। फिर वह नौकर गट्ठर बाँधकर घर गया और मैंने धीरे से अँगूठी अपनी जेब में रख ली।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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