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________________ [4] नासमझी में गलतियाँ 107 दादाश्री : गरम होने से धमाका हो गया। दोस्तों ने तो सारी बात दबा दी कि यह कैसे हुआ, कैसे नहीं हुआ, वह सब दबा दिया लेकिन यह बहुत बुरा हुआ। तब तो फिर मुझे बहुत पछतावा हुआ कि 'अरे, ऐसा सब अपने हाथों, अपनी वजह से! हम कहाँ इसके निमित्त बने?' बोलो, फिर सिगरेट से चिढ़ हो जाएगी या नहीं? हमारे दूसरे एक दोस्त को तो पता नहीं था कि ऐसा सब हुआ है। तो उसके घर पर मैं जली हुई सिगरेट डालता था, तो जली हुई डालने की आदत, इसलिए वह मुझ पर गुस्सा करता था कि जल उठेगा, कुछ जल उठेगा। तब मैं कहता था कि 'भाई, अपने हाथों तो शायद ही कभी ऐसा होता है। जो नहीं जलना था, वह वहाँ पर जल उठा और यहाँ पर तो यह सारा हिसाब अलग तरह का है। घबराना मत, तू मत घबराना'। बुझाने भी जाता था फिर। हमें खुद को समझ में आता था कि यह जलती हुई सिगरेट फेंकने की आदत गलत है। इस बारे में जागृति रखनी पड़ेगी। ताश के खेल में ठगा गया, पैसों के लोभ की वजह से प्रश्नकर्ता : दादा आपने गलतियाँ तो की हैं लेकिन फिर उन पर खूब सोचा है, जागृत रहे हैं। यदि फिर से ऐसी कोई गलती हो गई और वापस आप उसमें से छूट गए हों, ऐसी घटनाएँ बताइए न? दादाश्री : बचपन में एक बार मैं पहली बार नडियाद गाँव गया था। उस समय मेरी उम्र ग्यारह-बारह साल की थी। प्रश्नकर्ता : पहली बार नडियाद गए थे? दादाश्री : हाँ, पहली बार नडियाद। तब नडियाद ऐसा नहीं था, जंगल जैसा था। एक बारात में नडियाद गए थे। वहाँ दस दिन तक रहा था। बारात में गया था, वह सब मुझे याद है! प्रश्नकर्ता : बारात में गए थे? दादाश्री : बारात में। नहीं तो और किसमें जाना था? बारात में
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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