SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 106 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) की आदत पड़ गई। उसे सत्संग कहो या कुसंग कहो। या फिर मैं कुसंगी होऊँगा, और उन्हें कुसंगी बनाया। लोग क्या कहते हैं ? 'मेरा बेटा कुसंगियों के साथ रहकर कुसंगी बन गया'। अरे! लेकिन भाई, इसका क्या प्रमाण है कि तेरे बेटे का कुसंग उसे लगा है या उसका तेरे बेटे को लगा है? कई लोग ऐसा कहते हैं कि, 'मेरे बेटे के साथ सिर्फ कुसंग है? तो भाई कुसंगी कौन है इसमें ? छहों बच्चों के बाप, सभी ऐसा कहते हैं कि 'मेरे बेटे पर कुसंग का असर हो गया', तो इनमें से कुसंगी कौन है? ज़रा पता तो लगाना चाहिए न? उसकी बजाय हम ऐसा कहें कि मेरा बेटा कुसंग के रास्ते पर चला गया है, तो बात अलग है। इस तरह कुसंग के रास्ते पर चले गए थे तो बीड़ियाँ, सिगरेट, हुक्का पीते थे। ज़ोरदार! सभी दोस्त पीते थे। सिगरेट से जल उठा, बहुत पछतावा हुआ अभी भी मुझे दिखाई देता है कि शादी के अवसर पर एक दोस्त के वहाँ गया था तो शादी का मंडप बाँधा हुआ था तो उस मंडप के नीचे बैठकर स्त्रियाँ, बड़ी कढ़ाई में ढेबरा (बाजरे का एक व्यंजन) तल रही थीं। उनके ऊपर मंडप बाँधा हुआ था। उनके साथ वाले रूम में हम सब दोस्त बैठे-बैठे मस्ती कर रहे थे। मैं सिगरेट पी रहा था, तो मैंने यों सिगरेट खिड़की से बाहर फेंकी और वह चद्दर पर जा गिरी। वहीं पर जिसके नीचे वे लोग तल रहे थे। क्या कभी ऐसा हुआ है कि सिगरेट से बड़ी आग लग जाए? लेकिन कैसे संयोग इकट्ठे हुए? नीचे ढेबरे तले जा रहे थे। वर्ना सिगरेट तो आखिर में छेद करके नीचे गिर जाती। प्रश्नकर्ता : हाँ, नीचे गिर जाती। दादाश्री : अब नीचे वह चूल्हा जलाया हुआ था, इसलिए चद्दर गरम हो गई थी और यह सिगरेट गिरते ही धमाका हो गया। प्रश्नकर्ता : वह सब गरम हो गया न, इसीलिए जल उठा।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy