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________________ 94 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) प्रश्नकर्ता : झाडू। दादाश्री : झाडू नहीं, झेणु। झेणु मतलब ये कंटीली झाड़ियाँ होती हैं न, ये जो बाड़ में उगे रहते हैं, वे बंधवाते थे। वे तो अन्-ईवन होती हैं। आप जो कह रहे हो न (झाडू), वह तो ईवन (एक रूप) होती है। यह तो कैसा होता है? झाडू तो रेग्युलर स्टेज में होता है, लेकिन ये तो झेणु बंधवाते थे। ___अब इतना तिरस्कार! मुझे तो बहुत बुरा लगता था कि ये किस तरह के लोग हैं! प्रश्नकर्ता : आपने ऐसा देखा था दादा, अपने समय में? दादाश्री : देखा था। यह सब देखकर मैं थक गया था। मेरा दिमाग़ खिसक जाता था। मैं तो क्षत्रिय पुत्र हूँ। मुझे गुस्सा भी आता था। कैसे लोग हैं ? यहाँ कहाँ मेरा जन्म हुआ?' तो हरिजनों को तो आगे कोडियुं और पीछे झेणु बाँधना पड़ता था। हम उच्च जाति के और आप निम्न जाति के! इसलिए हमें कहना पड़ा है कि 'हे भयंकर नर राक्षसों, अभी तो आपको बहुत भुगतना पड़ेगा। अगर कुत्ता आपके घर में चक्कर लगा जाए, बिल्ली का मुँह लगा दूध आप पी लेते हो। वह चलता है और मनुष्य पर ऐसा भयंकर अत्याचार!' क्या इसमें न्याय-अन्याय देखना ही नहीं है? ढूँढने पर भी हिन्दुस्तान में मानवता कहाँ मिलेगी? तिरस्कार से हुआ हिन्दुस्तान दुःखी अभी के लोगों में मोह बढ़ गया है इसलिए प्रजा हो गई है डाउन। डाउन होने से क्या फायदा हुआ? वे सारे तिरस्कार-विरस्कार चले गए। इसलिए मैं तो खुश हुआ कि अच्छा हुआ यह डाउन हो गया। अब जो डाउन है उसे चढ़ने में देर नहीं लगेगी लेकिन तिरस्कार वगैरह जैसा पागलपन चला गया है पूरी तरह से। नोबल हो गए हैं, नोबिलिटी आ गई है। बहुत लाभ हुआ है। अंग्रेज वगैरह यह सब मिले न, तो बहुत
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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