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________________ [3] उस ज़माने में किए मौज-मज़े प्रकाशमान करने के लिए एक ज़बरदस्त साधन है ! इसके पीछे बड़े कॉज़ेज होंगे न? मुझे भी आश्चर्य होता है ! प्रश्नकर्ता : पेपर में भी अभी सारी खराब बातें ही आती हैं। मन बिगड़ जाता है पढ़कर। दादाश्री : अब पेपर इतना नुकसानदायक नहीं है क्योंकि जब संसार अच्छे भाव में आएगा न, तब इस पेपर में अच्छी-अच्छी बातें पढ़ेंगे। तब उसके भाव फिर से बहुत सुंदर भी हो जाएंगे। पेपर वीतराग है। हरिजनों का तिरस्कार अच्छा नहीं लगता था प्रश्नकर्ता : उस ज़माने की ऐसी कोई बात थी जो आपको अच्छी नहीं लगती थी? दादाश्री : अभी तो ये पुण्यशाली पैदा हुए हैं सारे कि इन्होंने डॉलर देखे। क्योंकि दानत अच्छी है, तिरस्कार नहीं है लोगों के लिए। हमारी प्रजा तो कहाँ तक बिगड़ी हुई थी! 'अरे, हरिजन को क्यों छुआ?' कोई बच्चा हरिजन को छू ले भूल से, उस पर उसे झिड़क देते थे, 'तूने क्यों छुआ उसे?' ऐसी प्रजा! यह तो, ज्ञानी हूँ इसलिए क्या बोलूँ ? वर्ना अगर राजा होता तो गोलियाँ चलवा देता। ऐसा करते हो सब? चैन से जीने भी नहीं देते। कुत्ते-बिल्ली घर में घुस जाएँ तो चलता है, और इन हरिजनों का क्या? ये बेचारे पूरे गाँव की सफाई करने आते हैं, ये सब सफाई करने आते हैं, वे सेवा करने आते हैं गाँव की। उसके बदले में देना-करना तय किया होता है थोड़ा-बहुत, उनका घर चले उतना लेकिन उसके लिए नियम क्या होता था? यहाँ पर गले में कोडियुं (कटोरा) बाँधना पड़ता था। थूकना हो तो नीचे नहीं थूक सकते थे, कोडियुं में थूकना पड़ता था और पीछे उनके पैरों के निशान पड़ते थे, बूट तो नहीं होते थे बेचारों के पास। उनके पैर ज़मीन पर पड़ते थे तो उसे नुकसानदायक माना जाता था, इसलिए उनके पीछे झेणु (बुहारी) बाँधते थे ताकि पैरों के निशान मिट जाएँ। वह आगे चलता था और पीछे-पीछे झेणु चलता था। झेणु आप समझते हो न?
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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