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________________ [2.1] पढ़ाई करनी थी भगवान खोजने के लिए यह क्या है भला! पंद्रह साल तक किताबें ही गाते रहो! GO (जी-ओ) टू गो, GO (जी-ओ) टू गो। अरे! छोड़ न यहीं पर! अगर कोई लाइन हो तो अलग बात है लेकिन मैट्रिक तक तो सिर्फ भाषा ही सिखाते हैं। बेकार ही A-B-C-D सिखाते हैं। वह भी किसी और की भाषा। क्या इस फॉरेन की भाषा को सीखने के लिए मैट्रिक तक पढ़ना चाहिए? किस तरह का घनचक्करपन है यह! यहाँ पर फॉरेन की भाषा सीखने में इंसान की आधी उम्र बीत जाती है, इसके बजाय फॉरेन में जाकर दो तीन साल रह आए तो सब आ जाएगा। बेकार ही यहाँ पर महेनत करके दिमाग़ खराब करना। इसका क्या करना है, क्या करना है भाषा-वाषा का? फिर वापस अगले जन्म में इसे भूल जाएँगे, फिर मराठी सीखनी होगी। फिर उसके बाद वाले जन्म में उसे भी भूल जाएँगे, फिर हिंदी सीखनी होगी। फिर उर्दू सीखनी होगी। इसका क्या करना है? जिसे भूल जाना है, उसे क्या सीखना? वह भी अगर पिछले जन्म का सीखा हुआ होगा वही सीख पाएँगे। बिना सीखा हआ तो कभी भी नहीं आ पाएगा। जो सीखा है, उस पर आवरण के रूप में एक परत आ जाती है, दो परतें आ जाती हैं। जितने जन्म जानवर में गया होगा न, उतनी परतें आ जाती हैं। जानवर योनि में नहीं गए हों तो एक परत होती है तब पढ़ाई में फर्स्ट नंबर पर आता है। वही का वही अज्ञान पढ़ता है और वापस आवृत हो जाता है ___ एक ही चीज़ को लाखों जन्मों तक पढ़ते रहे हैं। अनंत जन्मों से यही पढ़ रहे हैं और फिर आवृत हो जाता है। अज्ञान को पढ़ना नहीं होता। अज्ञान तो सहज भाव से आ जाता है, ज्ञान को पढ़ना पड़ता है। मेरे आवरण कम हैं इसलिए तेरह साल की उम्र में भान हो गया। मुझे बचपन से ही ऐसे ही विचार आते रहते थे कि रोज़ वही की वही चीजें, उससे बोर हो जाते थे। इसीलिए पढ़ना नहीं आता था न! पढ़ाई में कुछ नहीं आता था उसका कारण यही था। ऐसे ही विचार आते रहते थे।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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