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________________ 42 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) इतने सालों में तो भगवान ढूँढ निकालता मास्टर जी से कहा था, 'मास्टर जी, ये पंद्रह साल इस एक भाषा को सीखने में निकाले लेकिन यदि इतनी ही महेनत भगवान ढूँढने में की होती तो ज़रूर भगवान प्राप्त करके बैठ चुका होता! इसमें तो बल्कि मेरा समय बिगड़ा है। समय इस तरह से बिगाड़ने के लिए नहीं है। मैं तो जागृत इंसान हूँ, ऐसा कहा। मैंने बेकार ही इतने साल खोए'। तब उन्होंने कहा कि 'तझे यदि भगवान ढूँढने हैं तो फिर तुझसे पढ़ाई नहीं होगी'। मैंने कहा, 'नहीं होती है लेकिन अब क्या करूँ? आप ही रास्ता बताइए'। तो साहब भी हक्का-बक्का रह गए, चुप ही हो गए। इसे तो कुछ कहने जैसा ही नहीं है। यह लड़का तो उद्धत है, इसका तो नाम ही मत लो। उन दिनों उद्धता दिखाई देती थी न! अभी कोई उसे मेरी उद्धताई नहीं कहेगा लेकिन तब तो उद्धताई ही कहते न! और कुछ भी करना नहीं आता था, समझ नहीं थी तो उसे उद्धत ही कहेंगे न! अरे, स्टंट कहते थे, स्टंट। दो साल में जो भाषा सीख जाएँ, मत बिगाड़ो उसके लिए दस साल ___ यह भाषा सीखना, वह तो अगर दो साल इंग्लैन्ड में छोड़ आएँ न, तो सीख जाएँगे। बिना बात के रटाते रहते हो, A-B-C-D-E-F-G ! अपनी जो यह सब शिक्षा व्यवस्था है न, वह वेस्ट ऑफ टाइम एन्ड एनर्जी (समय और शक्ति का अपव्यय) है। अंग्रेजों के समय से हैं यह। अपने यहाँ तो, अपने बच्चे इतने होशियार हैं कि फर्स्ट-सेकन्ड और थर्ड स्टैन्डर्ड एक साथ पास कर लें! सब ऐसे नहीं होते लेकिन जितने होशियार हैं, उन्हें तो जाने दो आगे। उनका भी रास्ता रोका हुआ है, बारह महीने से कम नहीं। होशियार यानी कैसे होशियार ! मैंने देखे हैं ब्रिलियन्ट बच्चे! अभी भले ही अनाड़ीपन दिखाई देता हो लेकिन आखिर में ब्लड तो आर्यों का है। अतः यों बहुत होशियार हैं लेकिन यह भाषा किसलिए रटाते, रटाते और रटाते ही रहते हैं ? इसका कब अंत आएगा?
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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