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________________ पर ज्ञान व अज्ञान साथ में हैं, वहाँ पर अहंकार है ही । यदि अज्ञान चला जाए तो अहंकार भी चला जाएगा। जब तक अहंकार है, तब तक ज्ञानअज्ञान साथ में रहते हैं । उसे क्षयोपशम कहा गया है । ज्ञान मिलने के बाद जो ज्ञान भाग है, वही पुरुष है और अज्ञान भाग, वह प्रकृति है। ज्ञान ही आत्मा है और जब वह विज्ञान स्वरूप हो जाएगा तो वही परमात्मा है। ज्ञान - अज्ञान का मूल है विज्ञान ! आत्मा विज्ञानमय ही है। उसमें से ज्ञान - अज्ञान का अंधेरा व उजाला, दोनों शुरू होते हैं। अहंकार और अहम्, दोनों में बहुत फर्क है । 'मैं' और अहम् एक ही हैं। विशेष भाव में पहले अहम् उत्पन्न होता है । 'मैं' पन ही अहम् है और 'मैं' पन का प्रस्ताव करना, व्यक्त करना कि 'मैं चंदू हूँ', वह है अहंकार। प्रथम मान्यता में 'मैं कुछ हूँ', मूल आत्मा की बजाय अन्य कुछ हूँ, उसे ‘अहम्' की, 'मैं' की शुरुआत कहते हैं । जब तक 'अहम्' वाली स्टेज है, तब तक मात्र अन्य में अस्तित्व का भान है लेकिन अभी तक यहाँ पर कर्तृत्व का भान नहीं हुआ है । मात्र मान्यता तक ही, बिलीफ तक ही यानी कि जो ज्ञान - दर्शन है, वह दर्शन भाग ही बदला है, फिर जब ‘मैं' पद से आगे बढ़ता है और मानता है कि 'मैं चंदू हूँ', जब ऐसा होता है तब ‘अहम्' में से अहंकार । अर्थात् यहाँ अहम् का प्रस्ताव होता है (अहम् व्यक्त होता है, अहम् की शुरुआत होती है), मात्र इतने से ही रुक नहीं जाता। उसके बाद आगे बढ़ता है । वस्तु में उसका कुछ भी नहीं है फिर भी मानता है कि यह वस्तु मेरी है, वह मान है । 'मैं प्रेसिडेन्ट हूँ, डॉक्टर हूँ', ऐसा मानना, वह मान है। अर्थात् उसे जो मालिकीपन आ जाता है, वह मान है लेकिन यदि मालिकीपने के बिना सिर्फ प्रस्ताव करे, शोर मचाए, ज़रूरत से ज़्यादा 'मैं पन' करे तो वह अहंकार कहलाता है। जब मालिकीपन आए, तभी मान आता है । उसके बाद उससे आगे बढ़कर मालिकीपने में ममता मिल जाती है और तब दूसरों को दिखाता है कि 'यह मेरा बंगला है, मेरी गाड़ी है, मेरे बीवी-बच्चे', वह अभिमान है। जहाँ से प्रस्ताव करके आगे मान में जाता है, उसे (विभाविक ) ज्ञान में आना कहते हैं । जब तक अहंकार की स्टेज है, तब तक बिलीफ में, 42
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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