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________________ (१.१२) 'मैं' के सामने जागृति १७९ हो गया यानी स्वभाव, स्वभाव में आ गया। स्वभाव, स्वभाव में एक हो गया। और जब तक अशुद्ध चेतन है, विभाव है, तब तक अलग है। यदि दस प्रतिशत अशुद्धि हो और नाइन्टी परसेन्ट शुद्धि हो तब भी नहीं चलेगा। तब तक (क्रमिक मार्ग के) ज्ञानी ऐसा कहते हैं कि, 'मैं अलग हूँ और आप सब शिष्य अलग हो'। तब तक ज्ञानी को अकुलाहट भी रहती है। प्रश्नकर्ता : हाँ, लेकिन आप कहते हैं कि अहंकार शुद्ध हो गया लेकिन वह रिलेटिव में से रियल में आता है। वह तो कुछ भी समझ में नहीं आया। दादाश्री : नहीं, लेकिन अंहकार जब शुद्ध होता है तब स्वभाव से ही एकाकार हो जाता है, शुद्धात्मा और अहंकार। क्योंकि सिर्फ 'मैं' ही बचता है। अन्य कुछ भी नहीं बचता, वह भी आश्चर्य है न! प्रश्नकर्ता : क्रमिक मार्ग में अंतिम स्टेप में 'मैं' बचता है ? दादाश्री : सिर्फ 'मैं' ही बचता है। प्रश्नकर्ता : अब यह जो 'मैं' विलय होता है, वह अपने आप (खुद) तो नहीं होता न? दादाश्री : नहीं! 'मैं' बैठता भी कहाँ पर है ? शुद्धात्मा में बैठ जाता है। प्रश्नकर्ता : हाँ! शुद्धात्मा में बैठता है लेकिन जब यह 'मैं' दूसरी जगह पर बैठा है, अर्थात् शुद्धात्मा नहीं मिला है, उसे ऐसा कुछ समझाने वाला तो होना चाहिए न? दादाश्री : इस 'मैं' में यदि ज़रा भी कोई अन्य परमाणु रहे, तब तक 'मैं' बाहर बैठा रहता है लेकिन जब परमाणु विलय हो जाएँगे, उनका गलन हो जाएगा तब 'मैं' उसके अंदर ही बैठ जाएगा। वही मोक्ष है। वही अंतिम अवतार है। वह चरम शरीर कहलाता है। वह शरीर ऐसा होता है कि काटने जाए तो कटे नहीं। क्रमिक मार्ग में ठेठ अंतिम अवतार तक अंहकार रहता है। लेकिन
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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