SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 228
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१.१२) 'मैं' के सामने जागृति १५७ दादाश्री : भाव का कोई सवाल नहीं है। अज्ञान का संयोग नहीं मिलता। दूसरे संयोग मिलते हैं। शराब पी ली न! यह जो अज्ञानता है, वही अहंकार है। प्रश्नकर्ता : आत्मा तो मूल प्रकाश है, अनंत शक्ति वाला है, तो उसमें यह अहंकार कहाँ से आ जाता है ? दादाश्री : उसमें कहाँ आता है? अज्ञानता ही अहंकार है। प्रश्नकर्ता : आवरण आ जाए तो भी क्या हर्ज है? वह खुद तो जानता ही है न कि मैं प्रकाश हूँ! दादाश्री : उससे कुछ होगा नहीं न! अहंकार को क्या लाभ है? जब तक अहंकार को मीठा नहीं लगेगा तब तक वह यह नहीं कहेगा कि यह शक्कर है। अतः अहंकार का निबेड़ा लाना है। आत्मा का निबेड़ा तो है ही। हम खुद कौन है? __ ऐसा है न, हम अभी जो हैं न, तो उस चीज़ में वास्तव में हम क्या हैं? हम नाम रूपी नहीं हैं, हम व्यवहार रूपी नहीं हैं, तो वास्तव में हम क्या हैं? तो कहते हैं, जितना अपना ज्ञान है और जितना अपना अज्ञान है, बस उतना ही। वही हम हैं। जैसा ज्ञान हो उस अनुसार संयोग मिलते हैं। अज्ञान हो तो उस अनुसार संयोग मिलते हैं। ज्ञान-अज्ञान के अनुसार ही संयोग मिलते हैं। प्रश्नकर्ता : और उस ज्ञान और अज्ञान के अनुसार ही उससे कर्म होते जाते हैं? दादाश्री : हाँ, उस अनुसार कर्म होते जाते हैं और उसी अनुसार ये सभी संयोग मिलते हैं। वह खुद यह नाम नहीं है, वह खुद अहंकार नहीं है, वह खुद तो 'यह' (ज्ञान-अज्ञान) है। प्रश्नकर्ता : 'खुद यह है' इसका क्या मतलब है, दादा? दादाश्री : ज्ञान या अज्ञान, वही खुद है। वही उसका उपादान है।
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy