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________________ १५६ आप्तवाणी-१४ (भाग-१) दादाश्री : जिसे नासमझी है उसे। अहंकार अज्ञान को हुआ। प्रश्नकर्ता : अज्ञान किसका है? दादाश्री : दो चीजें हैं, अज्ञान और ज्ञान । ज्ञान अर्थात् आत्मा और अज्ञान अर्थात् अनात्मा। उसे अहंकार हुआ, अज्ञान को। अर्थात् अहंकार हुआ इसलिए यह सब हो गया। तब फिर रात-दिन चिंता-परेशानी, संसार में अच्छा नहीं लगता फिर भी पड़े रहना पड़ता है न, कहाँ जाएँ? कहाँ जा सकता है? वहीं के वहीं। अर्थात् यहीं पलंग पर पड़े रहना पड़ता है, नींद न आए फिर भी! प्रश्नकर्ता : अहंकार कहाँ से उत्पन्न हुआ? दादाश्री : अहंकार ही अज्ञान है न। अज्ञान और ज्ञान, दो अलग चीजें हैं। मान लीजिए अपने यहाँ पर अभी कोई बड़े सेठ आए हैं, वे सेठ बहुत अच्छी बातचीत करते हैं, लेकिन अगर कोई उन्हें आधा रतल (२०० ग्राम) ब्रान्डी पिला दे, तो फिर वे कैसी बातें करेंगे? प्रश्नकर्ता : ब्रान्डी का संयोग हो गया इसलिए दूसरी तरह की बात करेंगे। दादाश्री : ये जो संयोग मिले हैं न, इसलिए ऐसा सब हो गया है। ज्ञान स्वरूप को संयोग मिल गए हैं इसलिए यह भ्रांति उत्पन्न हुई है। जैसे कि वे सेठ तो ऐसा कहते हैं न कि 'मैं तो प्रधानमंत्री हूँ, ऐसा हूँ, वह हूँ', कहता है... प्रश्नकर्ता : दादा, तो ज्ञान कहाँ से उत्पन्न हुआ? दादाश्री : ज्ञान तो उत्पन्न ही नहीं होता न! ज्ञान तो परमानेन्ट वस्तु है। बाहर की वस्तुओं की वजह से अज्ञान उत्पन्न हो गया। जैसे कि सेठ ने शराब पी ली न, संयोगवश। अतः फिर जब इन सब संयोगों से छूट जाएँगे तब मुक्ति होगी। प्रश्नकर्ता : भाव किया तो फिर वह अज्ञान का संयोग हुआ न उसे?
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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