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________________ जाएगा। ज्ञानी जब स्वरूप का ज्ञान देते हैं तो उससे निज स्वरूप का चिंतन होता है, इसलिए पुद्गल का चिंतन छूट जाता है। इससे पुद्गल भी छूटने लगता है। शुद्ध अहंकार (राइट बिलीफ वाला 'मैं') खुद का ही चिंतन करता रहता है। अर्थात् स्वाभाविक प्रकार से वह स्वभावमय हो जाता है। निज स्वभाव को पहचाना तभी से अहंकार गया। आत्मा का विशेष भाव अहम् है और पुद्गल का विशेष भाव पूरण-गलन है। पहले आत्मा का विशेष भाव उत्पन्न होता है, उसके बाद पुद्गल का विशेष भाव होता है। अतः अहम् चले जाने पर पुद्गल कम होता जाएगा, छूटता जाएगा। मिश्रचेतन को ही पुद्गल कहा है। परमाणु और पुद्गल में फर्क है। परमाणु, वे शुद्ध जड़ तत्त्व हैं। जिसे शुद्ध पुद्गल कहा जाता है और दूसरा विशेष भावी पुद्गल है। शुद्ध पुद्गल क्रियाकारी है। दो तत्त्वों के मिलने से विशेष भावी पुद्गल बन गया है। उससे रक्त, हड्डी, माँस वगैरह बनते हैं। दो तत्त्वों के सामीप्य भाव से अहम् उत्पन्न हो गया है। वह खुद ही मूल व्यतिरेक गुणों का मुख्य स्तंभ है। यदि वह नहीं रहेगा तो सभी व्यतिरेक गुण खत्म हो जाएँगे! रोंग बिलीफ, वही अहंकार है और राइट बिलीफ, वह 'शुद्धात्मा' भाव करना चेतन की अज्ञानता है और कषाय पदगल के पर्याय हैं। अज्ञान चले जाने पर भाव होने बंद हो जाते हैं। ज्ञानी स्वभाव भाव में रहते हैं और अज्ञानी को विशेष भाव रहते हैं, जो कि अज्ञान से उत्पन्न होते हैं। मूल आत्मा इसमें कुछ भी नहीं करता। (२) क्रोध-मान-माया-लोभ, किसके गुण? आत्मा के अन्वय गुण अर्थात् निरंतर साथ रहने वाले, जैसे कि अनंतज्ञान, अनंतदर्शन, परमानंद। जड़ के संसर्ग से उत्पन्न होने वाले गुणों को व्यतिरेक गुण कहा गया है, जैसे कि क्रोध-मान-माया-लोभ। 17
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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