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________________ है, ज्ञान नहीं ! ज्ञान शाश्वत गुण है इसलिए अगर वह बदल जाएगा तो हमेशा के लिए ही बदल जाएगा ! अतः आत्मा के द्रव्य में कुछ भी नहीं बिगड़ा है, मात्र बिलीफ ही बदलती है और उसके बदलने के प्रोसेस में बहुत सारी गुह्य प्रक्रियाएँ हो जाती हैं। मूल आत्मा का कुछ भी नहीं बिगड़ा है । मात्र दर्शन शक्ति आवृत हो जाती है इसलिए ‘मैं कौन हूँ' की मान्यता बदल जाती है। बचपन से ही अज्ञान प्रदान होता है कि 'मैं आत्मा' नहीं परंतु 'मैं चंदू, चंदू हूँ' तो फिर वैसा ही मानने लगता है। ज्ञान मिलने से सम्यक् दृष्टि का प्रदान होने से 'मैं' मूल स्थान पर बैठ जाता है और तमाम दुःखों का अंत आता है। सामीप्य भावने लईने भ्रांति उत्पन्न थाय छे. भ्रांतिथी एकरूप भासे छे अने ते ज आखा जगतनी अधिकरण क्रिया छे.' 4 परमाणु आत्मा के विशेष परिणाम स्वरूप अहंकार हुआ। अहंकार होते ही में प्रयोगसा हो जाता है । - विश्रसा - प्रयोगसा - मिश्रसा प्रयोगसा के समय परमाणु जॉइन्ट नहीं रहते, मिश्रसा के समय रहते हैं। प्रयोगसा के समय तो परमाणु मिलने की तैयारी कर रहे होते हैं । उसमें से मिश्रसा तैयार होता है । शुद्ध परमाणु अहम् परमाणु में तन्मयाकार हो जाता है जब फल देता है तब अहंकार जैसा चिंतवन करता है, वैसा ही पुद्गल बन जाता है ! ऐसा क्रियाकारी है यह पुद्गल ! पुद्गल स्वभाव से ही क्रियाकारी है, ऐसे में दोनों का कनेक्शन हुआ तो आत्मा और पुद्गल दोनों के विशेष परिणाम हुए! यदि अहंकार खत्म हो जाएगा तो आत्मा का विशेष परिणाम भी खत्म हो जाएगा। उसके बाद पुद्गल का विशेष परिणाम अपने आप ही खत्म हो जाएगा! अहम् जैसा चिंतन करता है, पुद्गल वैसा ही बन 16
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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