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________________ १०८ आप्तवाणी-१४ (भाग-१) प्रश्नकर्ता : जड़ और चेतन के मिलने से क्रोध-मान-माया-लोभ, वे व्यतिरेक गुण उत्पन्न हो जाते हैं, लेकिन फिर साथ ही ऐसा कहा गया है, 'यदि अज्ञानता होगी, तभी'। ज्ञानी में क्रोध-मान-माया-लोभ उत्पन्न नहीं होते हैं? दादाश्री : यदि (जड़ और चेतन) साथ में होते तो ज्ञानी को भी होता लेकिन यदि साथ में रहेंगे तो फिर ज्ञानी रहा ही कहाँ ? प्रश्नकर्ता : वह समझ में नहीं आया। दादाश्री : दो चीजें साथ में रहेंगी तो फिर परिणाम तो आएँगे ही न! और यदि उन्हें अलग कर दिया जाए तो नहीं होगा। ये दो चीजें अलग हो गईं, दूर हो गईं, दूर हो जाएँ तो ज्ञानी और नज़दीक रहें तो अज्ञानी। प्रश्नकर्ता : लेकिन इसमें आप जो बात करते हैं, यह पूरा व्यवहार करते हैं, लोग देखते हैं तो यह व्यवहार तो जड़ का हुआ न? दादाश्री : वह तो होता रहेगा। फिर? प्रश्नकर्ता : तो इसमें यह कैसे पता चले कि विशेष परिणाम नहीं हो रहे हैं? दादाश्री : पहले मन में तन्मयाकार परिणाम हो जाते थे, अब 'वह' मन से अलग हो गया। मन अलग और 'मैं' अलग इसलिए वहाँ पर अलग होने का परिणाम दिखाई दिया हमें। प्रश्नकर्ता : अलग हो गया है, इसका मतलब क्या है? दादाश्री : वह अलग हो गया अत: उसका परिणाम दिखाई दिया हमें। मन और खुद दोनों अलग हो गए। ज्ञानी के लिए मन काम का नहीं है। ज्ञानी के लिए मन ज्ञेयरूपी है। उनका मन वर्किंग ऑर्डर में नहीं है। प्रश्नकर्ता : तो मन तो अपना फंक्शन करता ही रहता होगा न? दादाश्री : वह उसका पिछला परिणाम है। नया कुछ भी नहीं होता। मन को ही देखते रहते हैं कि मन में क्या विचार आ रहे हैं!
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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